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जैन - साहित्य की हिन्दी - साहित्य को देन
श्री रामसिंह तोमर एम० ए०
प्रारंभ में ही यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि जैन - प्राकृत और अपभ्रंश साहित्य को ही आधार मान कर यहाँ विचार किया है । अभी तक जितना प्राकृत और प्रपभ्रंश साहित्य प्रकाश में आया है, प्राय जैनो द्वारा ही लिखा हुआ मिला है। इन जैन लेखको ने देश के कोने-कोने में बैठकर रचनाएँ की । जैन साहित्य का रचना क्षेत्र बहुत विस्तृत था ।
जैन साहित्य की सबसे बडी विशेषता यह है कि उसे धार्मिक श्रावरण से छुटकारा कभी नही मिल सका । जैन कवियो या लेखको का कार्य बहुत ही कठिन था । धार्मिक दृष्टिकोण भुलाना उनके लिए मुश्किल था । यह प्रतिवन्ध होते हुए भी उचित अवसर आते ही जैन कवि अपना काव्य- कौशल प्रकट किए बिना नही रहते और ऐसे स्थलो पर हमें एक अत्यन्त उच्चकोटि के सरल और सरस काव्य के दर्शन होते है, जिसकी समता हम अच्छे-से-अच्छे कवि की रचना से कर सकते हैं । काव्य के सामान्य तत्त्वो के अतिरिक्त इन कवियो के काव्य की विशेषता यह है कि लोकरुचि के अनुकूल बनाने के लिए इन कवियो ने अपने काव्य को सामाजिक जीवन के अधिक निकट लाने का प्रयत्न किया है । मरलता और सरसता को एक साथ प्रस्तुत करने का जैसा सफल प्रयास इन कवियो ने किया, वैसा श्रन्यत्र कम प्राप्त होगा । धार्मिक प्रतिबन्धो के होते हुए भी वर्णन का एक नमूना पुष्पदन्त के महापुराण से हम उद्धृत करते हैं । ऐसे वर्णन स्थल -स्थल पर मिलते है। तीर्थकर का जन्म होने वाला है । जिस नगर में जन्म होगा, उसका वर्णन है
उत्तुगकोलखडियकसेरु पुक्खरवरदीवइ पुव्व मेरु । तहु पुष्वविदेह वह विमल गइ कोलमाणकारडजुयल । खरदडस डदलछइयणीर डिडीपिंडपडुरियतीर । दरिसियपयडसोंडाललील लोलतयूलकल्लोलमाल । जुज्झतचडुलकरिमयर णिलय परिभमिय गहीरावत्तवलय । जलपक्खालियतउसाहिसाह णामेण सीय सीयल सगाह । दाहिणइ घण्णसछण्णसीम उवयठि ताहि सठिय सुसीम । - महापुराण पुष्पदन्त ४८. २१-७
इस प्रकार के वर्णनो से इन कवियो ने अपनी कृतियो में एक विचित्र सौंदर्य लाने की चेष्टा की है और उसमें वे बहुत कुछ सफल भी हुए है ।
समस्त संस्कृत साहित्य में एक प्रकार की एकरसता हम पाते है । महाकाव्य का या नाटक का नायक कोई महान व्यक्ति ही होता है, काव्य का विषय साधारण हो ही नही सकता । जैन प्राकृत अपभ्रंश साहित्य में हम पहिली वार देखते है कि काव्य का नायक साधारण श्रेणी का व्यक्ति भी हो सकता है । कोई भी धन-सम्पन्न श्रेष्ठि (वैश्य) काव्य का नायक हो सकता है । इन लेखको ने अपनी सुविधाओ के अनुकूल इन नायको के चरित्रो में परिवर्तन अवश्य
१ नाटकीय प्राकृत, सेतुबंध श्रोर गाथा सप्तशती गोडवहो अजैनों द्वारा लिखे गए है। अपभ्रंश में अब्दुल रहमान कृत 'सदेश रासक', विद्यापति की कीर्तिलता दोहाकोष, विक्रमोर्वशीय के कुछ पद्य एव कुछ पद्य हेमचन्द के व्याकरण में भी श्रजैनो द्वारा लिखे प्राप्त हुए है ।