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अपभ्रंश भाषा का 'जम्बूस्वामिचरित' और महाकवि वीर जस्स कइ-देवयत्तो जणयो सच्चरियलद्धमाहप्पो। सुहसीलसुद्धवसो जणणी सिरिसतुमा भणिया ॥६॥ जस्सय पसण्णवयणा लहुणो सुमइ ससहोयरातिण्णि। .
सीहल्ल लक्खणका जसइ णामे ति विक्खाया ॥७॥ चूकि कविवर वीर का बहुत सा समय राज्यकार्य, धर्म, अर्थ और काम की गोष्ठी में व्यतीत होता था, इसलिये इन्हें इस जम्बूस्वामीचरित नामक ग्रन्थ के निर्माण करने में पूरा एक वर्ष का समय लग गया था।' कवि 'वीर' केवल कवि ही नही थे, वल्कि भक्तिरम के भी प्रेमी थे। इन्होने मेघवन' में पत्थर का एक विशाल जिनमन्दिर वनवाया था और उसी मेघवन पट्टण में वर्द्धमान जिन की विशाल प्रतिमा की प्रतिष्ठा भी की थी। कवि ने प्रशस्ति में मन्दिर-निर्माण और प्रतिमा-प्रतिष्टा के सवतादि का कोई उल्लेख नही किया। फिर भी इतना तो निश्चित ही है कि जम्बूस्वामि-चरित ग्रन्थ की रचना से पूर्व ही उक्त दोनो कार्य सम्पन्न हो चुके थे।
पूर्ववर्ती विद्वानों का उल्लेख अन्य में कवि ने अपने से पूर्ववर्ती निम्न विद्वान कवियो का उल्लेख किया है शान्ति कवि, जो कवि होते हुए भी वादीन्द्र थे और जयकवि, जिनका पूरा नाम जयदेव मालूम होता है, जिनकी वाणी अदृष्ट अपूर्व अर्थ में स्फुरित होती है।
यह जयकवि वही मालूम होते है, जिनका उल्लेख जयकीर्ति ने अपने छन्दानुशासन मे किया है। इनके सिवाय स्वयभूदेव, पुष्पदन्त और देवदत्त का भी उल्लेख किया है।
'बहुरायकज्जवम्मत्यकामगोट्ठीविहत्तसमयस्स ।
वीरस्स चरियकरणे इक्को संवच्छरो लग्गो ॥५॥-जबूस्वामिचरित प्र०। 'प्रयत्न करने पर भी 'मेघवन का कोई विशेष परिचय उपलब्ध नहीं हो सका। सो जयउ कइ वीरो वीरजिणदस्स कारिय जेण । पाहाणमय भवण पियरुइसेण मेहवणे ॥ इत्येव दिणे मेहवण पट्टणे वड्ढमाणजिणपडिमा । तेणावि महाकइणा वीरेण पयट्ठिया पवरा ।।-जबूस्वामिचरित प्र०। "सतिकई वाई विहू वण्णुक्करिसेषु फुरियविण्णाणो।
रससिद्धिसचियत्यो विरलो वाई कई एक्को ॥३॥ "विजयतु जए कइणो जाण वाण अइट्ठपुव्यत्ये। उज्जोइय धरणियलो साहइ वट्टिन्व णिन्वडइ ॥४॥
-जबूस्वामीचरित प्रश०। 'माण्डव्व-पिंगल-जनाश्रय-सेतवाख्य, श्रीपूज्यपाद-जयदेव-बुधादिकानाम् । छदासि वीक्ष्य विविधानपि सत्प्रयोगान् छशेनुशासनमिद जयकीतिनोक्तम् ॥-जैसलमेर भण्डारग्रन्थसूची। "सते सयभूएए वे एक्को कइ त्ति विन्नि पुणु भणिया। जायम्मि पुप्फयते तिणि तहा देवयत्तम्मि ।
-देखो जबूचरित, सधि ५ का प्राविभाग ।