SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराज मानसिंह और 'मान - कौतूहल' श्री हरिहरनिवास द्विवेदी एम्० ए० एल० एल० वी० एक बार दिल्ली जो तोमरो के हाथ से निकली तो फिर प्रयास करने के बाद भी कभी उननी न हो सकी । यद्यपि चारण भाट कहते ही रहे— "फिर फिर दिल्ली तोरो की, तोर गये तब श्रीरों की " परन्तु दिल्ली श्रौरी की हो गई और तौरो को श्राश्रय मिला ग्वालियर के किले और उसके निकट के प्रदेश में, जिसका आज भी 'तीरघार' नाम प्रसिद्ध है । तोमरो का सूर्य एक बार दिल्ली में ग्रस्त होकर पुन चौदहवी शताब्दी के अन्त मे ग्वालियर-गढ पर उदय हुआ, जब वीर्गमदेव तोमर ने तैमूर के हमले के बाद अपने श्रापको स्वतन्त्र महाराजा घोपित Mee I 24 Joh 14. hi Jamia Srawa CRIRE 3. महाराज मानसिंह तोमर द्वारा निर्मित मानमंदिर के भित्ति चित्र और पत्थर की कारीगरी कर ग्वालियर के तोमर वंश की स्थापना की । प्राय एक शताब्दी तक इस वश ने धर्म-मीरु, कला र साहित्य-प्रेमी नरेशो को उत्पन्न किया । गणपतिदेव, डूंगरेन्द्रदेव, कीर्तिसिंह, कल्याणमल्ल ऐसे नाम है, जिन्हें ग्वालियर किले का दर्शक अनेक पर्वताकार जैन-मूर्तियों की चरण-चोकियो तथा अन्य कला-कृतियो पर श्रकित देखता है । तोमरो का राज्य अपनी पराकाष्ठा को महाराज मानसिंह तोमर के काल मे पहुँचा, परन्तु इस पूर्णचन्द्र के ग्रहण के लिए लोदी -वश रूपी राहु प्रबल हुआ। इन महाराज ने सन् १४८६ में गही मँभाली और तभी इन पर
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy