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प्रेमी - अभिनंदन ग्रंथ
है कि मथुरा का यह स्तूप प्रारभ मे स्वर्ण-जटित था और इसे 'कुवेरा' नाम की देवी ने सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ की पुण्य स्मृति में वनवाया था । तत्पश्चात् तेईसवे तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ जी के समय मे इसका निर्माण ईंटो से हुआ । इसके बाद लगभग आठवी शताब्दी मे वप्पभट्टसूरि ने इसकी मरम्मत कराई । इस अनुश्रुति के आधार पर भी मयुरा के प्राचीन जैन स्तूप का निर्माण काल लगभग ईस्वी पूर्व की छठी शताब्दी ठहरता है । इस प्रकार भारतवर्ष के इतिहास में यह स्तूप सबसे पुराना समझा जाता है । यह स्तूप कुषाण काल में वेदिकाग्रो, तोरणी आदि मे अलकृत था और इसमे कोट्टिय गण की वज्री शाखा के वाचक आर्य वृद्धहस्ति की प्रेरणा से एक श्राविका ने न की मूर्ति स्थापना की थी ।
चित्र १ - - श्रायागपट्ट, जिस पर 'वौद्ध स्तूप का नक्शा बना है (?) ।
'वौद्ध स्तूप' के समीप में दो बडे-बडे देव प्रासादो के भग्नावशेष भी मिले हैं। इनमें से एक मंदिर में एक तोरण काभा मिला है, जिसे महारक्षित प्राचार्य के शिष्य उत्तरदासक ने बनवाया था। इस पर के लेख के अक्षर भारहूत से पाये गये ई० पू० १५० के लगभग के घनभूति के तोरण के लेख के अक्षरो से पुराने है । ग्रत विद्वानो के