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देवगढ का गुप्तकालीन मदिर
२७७ उदाहरण प्रदर्शित करता है। मदिर का जगतीपीठ मूर्तिखचित गिलापट्टी की कम-से-कम दो श्रेणियो से अलकृत या, जिनमे मे छोटो कतार बडी वाली के ऊपर बनाई गई थी। वडे शिलापट्टी में मे दो अव भी अपने पुराने स्थान पर स्थित है । अब हम इस महत्त्वपूर्ण मुन्दर मदिर के विषय में कुछ जानकारी के लिए उसका अति मक्षिप्त वर्णन यहां दंगे।
___ ऊँचे चबूतरे तक पहुँचने के लिए मीढियो पर से जाना पडता है, जो हर बाजू के बीचोवीच मीढियां बनी हुई है। चबूतरे की लवाई हर तरफ ५५ फोट : इच है और उसके प्रत्येक कोने पर एक-एक छोटेछोटे मदिर है जो ११ फोट वर्गाकृति में है। इन मदिरो के अब केवल चिह्न अवगिप्ट है । मोठियो के कारण पोठ को लवाई हर तरफ दो भागों में बंट गई है। उनमें से भी हर एक भाग को लबान को बीचोबीच निकलते हुए पोठ से विभक्त किया गया है, जिस पर उन्कीर्ण गिलापट्ट आथित है। ये गिलापट्ट जगतीपोठ के अन्य पट्टो मे कुछ बडे है और नीनो तरफ उन्कीर्ण है।
अविष्ठान अव बहुत नष्ट हो चुका है, यद्यपि यह वात स्पष्ट है कि वह मदिर के दरवाजे को देहलो को मतह तक उठा रहा होगा। यह मतह मोढियो के अन में रक्खी हुई चन्द्रगिला मे करीब नौ फीट ऊंचाई पर थो। उसके ऊपर चारदीवारी के किनारे को निचली दोवाल करीब दो फोट और ऊंचो उठो रही होगा।
मदिर का गर्भगृह मादा और चौकोर (१८' "x१८'६") है। इसका मुख पश्चिम को ओर है तथा उममे एक बहुत बढिया उकेरा हुग्रा द्वार है । शेप तोनो तरफ एक-एक चौडा मूर्ति-खचित गिलापट्ट है, जो एक गहरं पाले में जडाहै। इस आले या 'रथिका' के दोनो ओर दो निकलते हुए गान्बास्तभ या वाजू है । मदिर-द्वार और रविकाओं (niches) के उतरगं (lintel) को ऊंचाई पर भारतुला (entablature) थो, जिस पर अत्यन्न मादा नोग्णाकृति गवानी (arched window pattern) का अलकरण बना हुआ था। इसमे भो ऊपर चागेयो दौटता हुया रज्जा था, जो चार कोनो मे निकली हुई वरनो पर टिका था। हज्जे मे द्वार और रयिकाविम्बी को रक्षा होनी था और उनके दर्शन में भी वाया न पहुंचती थो। गिखर ने जो स्प ग्रहण किया, उसके विषय में हम ऊपर लिख चुके हैं।
दरवाजे की चौखट (११२"x१०'९") के चार मूर्ति-खचित पहल है, जो चौग्वट के चारो ओर बने हुए है। प्रत्येक पहलू पर नीचे एक ग्वडी हुई मूर्ति है। सबमे भीतर के पहलू पर पहलो मूनि एक प्रभामडल-युक्त पुरुष की है, जिसके दोनो ओर एक-एक स्त्री-मूर्ति है। चौखट के बाहरों किनारो पर एक खडा हुअा बडी तोद का बीना (कीचक) है, जो अपने दोनो हाथों मे एक चिपटा घडा (मगलघट) थामे हुए है। गुप्त-कला के अनुरूप बने हुए दम घट में एक सुन्दर लतावलि निकलती हुई दिखाई गई है, जो पत्तियो और पुप्पो मे युक्त है। उप्णोश को ऊंचाई नक पहुंचकर यह लता-वितान १० इच पोछे विमकता हुआ दिखाया गया है, जिससे ठोक दाहिने गगा की मूर्ति
और वाएं यमुना की मूर्ति को यथोचित स्थान दिया जा सके। इन दोनो मूर्तियों के ऊपर छत्र है और दोनो अपने-अपने वाहनो पर आस्ढ दिखाई गई है। नदी देवताओं का इस प्रकार सिरदल के किनारो पर चित्रण गुप्त-कालोन अन्य प्राचीन मदिरो में भी मिलता है । मिरदल के मध्य में विष्णु भगवान अनत के ऊपर बैठे दिखाये गये है। ऐमा प्रतीत होता है कि ये वही देव है, जिनके लिए मदिर का निर्माण किया गया था। वाए से दाहिनी ओर की परिक्रमा करते हए हम उन मूनियुक्त शिलापट्टो के पास पहुँचते है, जिनके दृश्य भारतीय कला में अपना विशिष्ट स्थान रखते है। उत्तर की ओर का पट्ट गजेन्द्रमोक्ष की व्यया प्रगित करता है। पूर्व को ओर वाला नर और नारायण की तपस्या का सूचक है तथा दक्षिण की ओर वाले पट्ट पर अनन्तगायी विष्णु विराजमान है।
जमा कि मैने ऊपर कहा है, मदिर का अधिष्ठान दो कतारों में लगे हुए गिलापट्टो मे अलकृत था, जिनमे गमायण और महाभारत के दृश्य अकित किये गये थे। दुख की बात है कि मूर्तियो का बहुत थोडा अग वच पाया है। किंतु जो मूर्तियां इम ममय उपलब्ध है, वे वडे मनोरजक अध्ययन का विषय है । वे वही के एक गोदाम में सुरक्षित है।