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'कल्पसूत्र, पृ० २३० अ । कल्पसूत्र में वारण के स्थान पर चारण पाठ है, परन्तु यह पाठ अशुद्ध है । देखिए बिना पोरिडियल जरनत, भाग ३, १८०६, पृ० २३४, डॉ० बहलर का लेख
* ज्याग्रफिक्त क्र्त्स्न्येन्यून प्रॉव दो महामायूरी, डॉ० सिल्वेन लेवी, अनुवादक डॉ० वासुदेवशरण अग्रवाल, रतन आंत्र दी यू०पी० हित्वोरिकल सोसायटी, जिल्द १५, भाग २
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'आवश्यक चूर्णि, पृ० ४७६
'आवश्यक चूपि. पू० १५६
निशीय चूर्णि ५० पू० ३४ ( पुप्यविजय जी की हस्तलिखित प्रति )
आचारांग चूर्ण, पृ० २२६
'वीर निर्वाण और कालगणना, मुनिक्ल्याणविजय, पृ० १०
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'मरणतमाथि ४७०, ४७२. पृ० १२८१ आवश्यक टीका (मलय), पृ० ३६५ प्र
'आवश्यक चूर्णि, पृ० ३६४, ४०२
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१० बृहत्कल्पभाष्य १.३२७७
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'वही, ६.६१०३ इत्यादि
'प्रावश्यक चूपि, पृ० ३९४, ४०३
'शबैकासिक चूमि, पृ० ३६
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