________________
२३४
प्रेमी-अभिनंदन-प्रथ
है और ऐसा मालूम पडता है कि आचार्य हेमचन्द्र ने भी इसी का सहारा लेकर महावीर चरित का कल्कीकथानक लिखा ।
इन सब अनुश्रुतियो से पता चलता है कि कल्की महावीर के १००० या २००० वर्ष बाद हुआ । इस बात पर नव सहमत है कि कल्को पाटलिपुत्र का राजा था। कुछ इसे चाडाल कूल में पैदा हुआ और म्लेच्छ कुल का मानते हैं । लेकिन इसके ऐतिहासिक अस्तित्व पर किसी ने कुछ प्रकाश नही डाला है । इस अवस्था में पुरातत्त्व हमारी बडी मदद करता है । हमने देखा ही है कि तित्थोगाली में पाटलिपुत्र की वाढ का कितना सजीव वर्णन है । प्रसन्नता की बात है। कि पाटलिपुत्र की खुदाई से भी इन वडी वाढ का पता चलता है और इससे तित्थोगाली की अनुश्रुति की सत्यता का आधार और भी मजबूत हो जाता है ।
डा० डी० वी० स्पूनर ने कुम्हार (प्राचीन पाटलिपुत्र ) की खुदाई में मौर्य स्तर और राखो वाले स्तर के वी कोरी मिट्टी का स्तर पाया। उस स्तर में उन्हें ऐसी कोई वस्तु न मिली जिससे यह साबित हो सके कि उस स्तर
कभी वस्ती थी । इस जमी हुई मिट्टी का कारण डा० स्पूनर वाढ वतलाते है । डा० स्पूनर के शब्दों मे "कोरी मिट्टी की आठ या नौ फुट मोटी तह जो वस्तियो के दो स्तरो में पड गई है इसका और कोई दूसरा कारण न मैं सोच सकता हूँ, न दे सकता हूँ । हमें इस बात का पता है कि ऐसी ही वाढें पटने के आस-पास आती रही है और वखरा के अशोककालीन स्तम्भ की जड में भी एक ऐसी ही कोरी मिट्टी की तह मिलती है ।" डा० स्पूनर के मतानुसार पाटलिपुत्र की यह वाढ उम समय आई जब अशोक का प्रासाद खडा था, तथा बाढ की रेतीली मिट्टी ने न केवल महल के फर्श को ही नौ फुट ऊँची लदान से ढाक लिया, बल्कि महल के स्तम्भों को भी करीव करीव उनकी प्राधी ऊंचाई तक ढाक दिया, (आर्कियोलोजिक सर्वे ऑव इडिया, एनुअल रिपोर्ट, १९१२-१३, पृ० ६१-६२) ।
डा० स्पूनर इस बात का पता न चला सके कि वाढ कितने दिनो तक चली, न उनको इस बात का ठीक-ठीक अन्दाजा लग सका कि वाढ आई कव ? "यह बात सम्भव है कि हम आखिरी बात का अटकल लगा सके। हमने ऊपर देखा है कि राख वाली स्तर में या उसी के आसपास खुदाई से हमें ई० प्रथम शताब्दी के सिक्के और कुछ वस्तुएँ मिली हैं। ये प्राचीन चिह्न गुप्त-कालीन ईंट की दीवारो से तो जरूर ही पुराने है । अगर ई० सन् की पहली कुछ सदियो में aist आई होती तो इन अवशेषो और सिक्को का यहाँ मिलना आश्चर्यजनक होता । इस अवस्था में उन्हे मौर्यकालीन फ़र्ज़ पर या उसके कुछ ऊपर मिलना चाहिए था। अगर इमारत सिक्को के चलन -काल में बरावर व्यवहार मे थी तो वाढ सिक्को के काल और गुप्त काल के बीच में आई थी। इन सब बातो से और जो सबूत हमारे पास हैं उनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि वाढ ईसा की प्रथम शताब्दी मे या उससे दो एक सदी हट कर आई, तथा इस काल के सिक्के और वस्तुएँ जो गुप्तकाल की दीवार के नीचे मिले है इस बात के द्योतक है कि मौर्यकालीन महल का थोडाबहुत व्यवहार वाढ हट जाने पर भी वराबर होता रहा । मिट्टी के स्तर का सिरा फर्श का काम देता रहा होगा । इमारत बहुत कुछ टूट-फूट गई होगी तथा उसकी भव्यता में भी बहुत कुछ फरक पड गया होगा, लेकिन इसका कोई कारण नही देख पडता कि वह बसने लायक न रही हो । अगर खम्भो की ऊंचाई वीस फुट थी (शायद वे इससे उँचे ही थे) तो रेतीली मिट्टी ने उन्हें करीब ग्यारह फुट छोड दिया होगा और यह कोई बिलकुल साधारण ऊंचाई नही है । इसलिए यह सम्भव हैं कि वाढ के सैकडो वर्ष वाद तक भी मौर्यकालीन प्रस्थानमडप व्यवहार मे आता रहा ” (वही, पृ० ६२ ) ।
खुदाई से इस बात का भी पता चलता है कि रेतीली मिट्टी जमने के बाद पूरी इमारत जल गई, क्योकि गुप्तकालीन इमारतो के भग्नावशेष सीवी राख की तह पर खडे पाये गये, जिससे हम इस बात का अनुमान कर सकते है कि आग कदाचित् ई० म० चौथो या पांचवी में लगी हो । डा० स्पूनर की राय मे गुप्तकालीन दीवारें चलवी शताब्दी के बाद की नहीं हो सकती और इस वात की सम्भावना अधिक है कि वे इसके पहले की हो ।