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दो महान संस्कृतियों का समन्वय
श्री शान्तिप्रसाद वर्मा एम० ए० मुसलमानो के सम्पर्क में आने के पहले हिन्दू-सभ्यता विकास के एक ऊंचे शिखर तक पहुंच चुकी थी। धर्म और सस्कृति, कला और विज्ञान, साहित्य और सदाचार, मभो मे उसने एक अभूतपूर्व महानता प्राप्त कर ली थी। उवर अरव में इस्लाम को स्थापना के साथ-ही-साथ एक ऐसी सभ्यता का जन्म हुआ जो अपने जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में ही एक के बाद एक नई सभ्यता के सम्पर्क मे पाती गई और धीरे-धीरे कई मृतप्राय सस्कृतियो को पुनर्जीवित करतो हुई और स्वय अपने मे नये-नये तत्त्वो का समावेश करती हुई स्पेन के पश्चिम से चीन के दक्षिण तक फैल गई। हिन्दुस्तान को जमीन पर इन दो महान् मस्कृतियो का सम्पर्क मुस्लिम राज्य की स्थापना के बहुत पहले से प्रारम्भ हो चुका था। इम सम्पर्क का सूत्रपात दक्षिण भारत में हुआ । दक्षिण भारत से अरव-वामियो के व्यापारिक सम्बन्ध शताब्दियो पहले से चले आ रहे थे। उनके मुस्लिम-धर्म स्वीकार कर लेने से इन सम्बन्धों में किसी प्रकार की रुकावट नही पडी। दक्षिण भारत के हिन्दू-निवासी उसी प्रेम और आदर से अरव वालो का स्वागत करते रहे, जैमा वह पहले किया करते थे। मुसलमानो के लिए स्थान-स्थान पर मस्जिदें वना दी गई। मलावार के कई राजाओ ने इस्लाम धर्म को दीक्षा ले लो थी। दक्षिण के प्राय सभी राज्यो में मुसलमान उच्च पदो पर नियुक्त किये जाते थे।' मलिक काफूर ने जव दक्षिणभारत पर आक्रमण किया तो वोर वल्लाल को जिस सेना ने उसका मुकाविला किया था उसमें वास हजार मुसलमान भी थे। खलीफा उमर ने बहुत पहले यह फनवा दे दिया था कि हिन्दुस्तान ऐसा देश नहीं है जिसे जोतने को आवश्यकता हो, क्योकि यहां के निवासी विनम्र और सहिष्णु माने जाते थे और यह विश्वाम किया जाता था कि वे मुसलमानो के धार्मिक कृत्यो मे किसी प्रकार की रुकावट नहीं डालेगे।
आने वाली शताब्दियो मे जव मुसलमानो ने उत्तरी भारत पर आक्रमण किया तो उनका उद्देश्य इस देश में इस्लाम-धर्म का प्रचार करने का नहीं था। वे या तो लूटमार के उद्देश्य से आये थे, या मध्य एशिया की आर्थिक
और राजनैतिक परिस्थितियो ने उन्हें मजबूर कर दिया था कि वे यहाँ पाकर आश्रय खोजें। मुहम्मद गजनी का स्पष्ट उद्देश्य हमारे मन्दिरो और तीर्थ-स्यानो में एकत्रित की गई धन-राशि को लूट ले जाने का था। उससे वह ग़ज़नी को समृद्धि को वढाना चाहता था और साथ ही अपनी विजय से प्राप्त प्रतिष्ठा को वह मध्य एशिया में अपनी राजनैतिक स्थिति को मजबूत बनाने में लगाना चाहता था। मोहम्मद गोरी और उसके साथियो के सामने यह आकाक्षा भी
'मसूदी ने,जो दसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दक्षिण भारत में पाया था, मलावार के एक ही नगर में दस हजार मुसलमानो को बसे हुए पाया। अदुलफ मुहाल्हिल इन्न सईद व मार्को पोलो ने भी इसी प्रकार का वर्णन किया है। इन्न बतूता ने चौदहवीं शताब्दी में समस्त मलावार-प्रदेश को मुसलमानो से भरा हुआ पाया। उसने स्थान-स्थान पर उनकी बस्तियां व मस्जिदो के होने का जिक्र किया है। -इलियट और डॉसन, पहला भाग
'लोगन · मलावार, श्ला भाग, पृ० २४५
'सुन्दर पाडय के शासन काल में तक़ीउद्दीन को मन्त्रित्व का भार सौंपा गया और कई पीढियों तक यह पद उसी के कुटुम्ब में रहा।
-इलियट और डॉसन, तीसरा भाग 'इन्न दतूता ने इस घटना का जिक्र किया है। "विस्तृत अध्ययन के लिए देखिए
Tarachand Influence of Islam on Indian Culture Habib Mahmud of Ghazni