________________
प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ
समाचारपत्रो की बाढ 'गलाघोट कानून' एक निश्चित अवधि के लिए जारी किया गया था, क्योकि लार्ड कैनिंग समाचारपत्रो की स्वाधीनता छीनना नही चाहते थे। यह अवधि बीतने पर समाचारपत्रो की वाढ आ गई। बम्बई के वाम्बे स्टैंडर्ड, टेलिग्राफ और कोरियर तीनो मिलकर 'बाम्बे टाइम्स' और फिर १८ सितम्बर १८६१ को 'टाइम्स प्रॉव इडिया' नाम से निकले । १८५८ मे 'वाम्बे टाइम्स' के सम्पादक रावर्ट नाइट नियुक्त हुए, जो वाद को १८७५ में कलकत्तापाइकपाडे के राजा इन्द्रचन्द्र सिंह की सहायता और धन से प्रकाशित होने वाले 'स्टेट्समैन' के सम्पादक हुए थे। १८६७ मे मेटकाफ ऐक्ट के बदले नया ऐक्ट बना, जिसमें छापाखानो और अखबारो के नियन्त्रण तथा छपी पुस्तको की व्यवस्था की गई। १८६८ समाचारपत्रो के इतिहास में महत्त्वपूर्ण वर्ष हुआ, क्योकि इसी वर्ष वगाल के जेमर जिले से शिशिरकुमार घोष और मोतीलाल घोष ने बँगला में 'अमृत बाजार पत्रिका' नाम से साप्ताहिक पत्र निकाला, जो
आज भारतीय पत्र-पत्रिकाओ में सर्वश्रेष्ठ नही तो विशिष्ट अवश्य ही कहा जायगा। १८७० में ब्राह्म समाज के नेता केशवचन्द्र सेन ने जनता के हितार्थ एक पैसे का अखवार 'सुलभ समाचार' निकाला।
हिन्दी पत्रो की वृद्धि - १८७१ से हिन्दी पत्रो में आशातीत वृद्धि हुई और ऐसे समय हुई, जव हिन्दी उपेक्षित भाषा थी। देश की भाषा रहनेपर भी वह दवी हुई थी, क्योकि सरकार ने उर्दू को हिन्दी प्रदेश की भापा का पद दे दिया था। गढवाल प्रदेश युक्त प्रदेश में सबसे पीछे अंगरेजी राज में शामिल हुया, पर पत्र प्रकाशन में किमी से पीछे न रहा । अल्मोडे से १८७१ में 'अल्मोडा अखवार' और कलकत्ते से १८७२ मे "विहारवन्धु' निकला। 'विहारवन्धु' पटना-जिले के विहार ग्राम निवासी मदनमोहन, साधोराम और केशवराम भट्ट ने कलकत्ते से प्रकाशित किया था। १८७० से १८८० तक लाहौर से कलकत्ते तक अनेको हिन्दी पत्र निकले। इन पत्रो में आगे चलकर विशेप प्रसिद्ध 'भारतमित्र हुआ, क्योंकि उस समय के प्रसिद्ध पुरुषो तक के लेख इसमें प्रकाशित होते थे। 'भारतमित्र' १८७८ मे पाक्षिक निकला था और वह थोडे ही दिनो वाद साप्ताहिक हो गया था। उन्नीसवी शताब्दी के अन्तिम दशक में वह दो वार दैनिक हुआ और एक साल से अधिक न रह सका। तीसरी वार १९११ में और चौथी बार १९१२ मे वह दैनिक हुआ। आगे चलकर उसका साप्ताहिक सस्करण बन्द हो गया और १९३४-३५ में भारत से 'भारतमित्र' का नामोनिशान मिट गया। परन्तु 'भारतमित्र' के दिखाये मार्ग पर अनेक दैनिक पत्र हिन्दी में निकले, जिनमें कुछ तो आज भी प्रकाशित हो रहे है और कुछ काल-कवलित हो गये। फिर भी इसमें सन्देह नहीं कि यह युग दैनिक पत्रो का है, साप्ताहिको का नहीं।
वर्नाक्युलर प्रेस ऐक्ट
१८७६ में लार्ड लिटन वायसराय बनकर आये । इस समय बंगला मे कई साप्ताहिक पत्र निकल रहे थे, जिनमें 'अमृतवाजारपत्रिका' का प्रभाव बढ रहा था। यह सरकारी कर्मचारियो का भडाफोड किया करती थी। इसलिए इसका प्रभाव नष्ट करने के उद्देश्य से देशी भाषायो के सभी पत्रो का दमन करने को लार्ड लिटन ने 'वर्नाक्यलर प्रेस ऐक्ट' वनाया। इस समय बम्बई प्रेसीडेन्सी से बासठ पत्र मराठी, गुजराती, फारसी और हिन्दुस्तानी में (पता नही यह हिन्दी थी या उर्दू), पश्चिमोत्तर प्रदेश वा वर्तमान युक्तप्रदेश से (अवध को छोडकर) साठ, मध्यप्रदेश से पचास, वगाल से पचास और मद्रास प्रेसीडेन्सी से उन्नीस पत्र निकलते थे। जो पत्र अंगरेजी मे निकलते थे, उन्हें तो लिटन ऐक्ट से कोई डर नही था। इसलिए कई नये अंगरेजी पत्र निकले, यथा २० सितम्बर १८७८ को मद्रास से 'हिन्दू, १८७६ में कलकत्ते से 'बंगाली और १८६० में बम्बई से 'इडियन सोशल रिफार्मर' प्रकाशित हुआ। पहिले के जनक जी० सुब्रह्मण्य ऐयर, दूसरे के सुरेन्द्रनाथ बनर्जी और तीसरे के बैरामजी मलाबारी थे। सुरेन्द्रनाथ सिविलियन थे, पर कोई कागज