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भारत में समाचार-पत्र और स्वाधीनता
१८५ बगाल के ही नही, ब्रिटिश भारत के भी गवर्नर जनरल नियुक्त हो चुके थे) सती प्रथा उठा दी तब सुधारवादी-पत्रो का बल बहुत वढ गया।
समाचारपत्रो की स्वतत्रता लार्ड विलियम बेनटिक की उदारता के युग में भी प्रेसीडेन्सियो में कुछ मनमानी चलती ही थी। मद्रास सरकार ऐडम रेगुलेशन के ढगे पर प्रेस रेगुलेशन बनाने की सोच रही थी। उसने बगाल सरकार से इसकी प्रति भी मांगी थी। यद्यपि इसी समय लार्ड विलियम बेनटिक भारत के गवर्नर-जनरल बना दिये गये थे, उससे प्रेसीडेन्सियो की स्वेच्छाचारिता मे लगाम लग गई थी, तथापि इनका कार्यकाल समाप्तप्राय था। इसलिए ६ फरवरी १८३५ को ऐडम रेगुलेशन रद्द करने के लिए जो मेमोरियल गवर्नर-जनरल को दिया गया था, उस पर विचार भी लार्ड विलियम के चले जाने के बाद हुआ। नये गवर्नर-जनरल के आने में देर थी। इसलिए उनकी कौन्सिल के सीनियर मेम्बर सर चार्ल्स भेटकाफ अस्थायी गवर्नर-जनरल बना दिये गये। जो मेमोरियल इन्हे दिया गया, उस पर विलियम ऐडम, द्वारकानाथ ठाकुर, रसिकलाल मलिक, ई० एम० गार्डन, रसमय दत्त, एल० एल० क्लार्क, सी० हाग, टी० एच० बकिन यग, डेविड हेयर, टी० ई० एम० टर्टन-यग और जे० सदरलैंड के हस्ताक्षर थे। ३ अगस्त १८३५ को अपनी कौन्सिल के सर्वमतो से सर चार्ल्स ने ऐडम रेगुलेशन रद्द कर प्रेस को स्वतन्त्र कर दिया। इस विधान से बगाल का १८२३ का रेगुलेशन ही नही, बम्बई के १८२५ और मद्रास के १८२७ के रेगुलेशनो का भी सफाया हो गया। सर चार्ल्स ने इस सिद्धान्त पर प्रेस को स्वतन्त्र कर दिया कि सवको अपने विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
पहला दैनिक पत्र 'बगाल हरकारा' सबसे पुराना दैनिक पत्र अंगरेजी मे निकला था। सैमुएल स्मिथ नाम के एक अंगरेज ने इसे खरीद कर उदार विचारो के प्रचार में लगाया था। प्रिन्स द्वारकानाथ इसके सरक्षक थे और इसे आर्थिक सहायता दिया करते थे। 'बगाल-हरकारा' के साथ ही 'इडिया गैजेट' भी द्वारकानाथ के हाथ आ गया था और फिर ये दोनो आगे चलकर 'इडियन डेली न्यूज रूप से दैनिक में परिणत हो गये थे। अन्त समय तक डेली न्यूज' मे उदार विचार प्रकट किये जाते थे। इसके मालिक कलकत्ते के प्रसिद्ध वैरिस्टर मि० ग्रहम थे। अनुदार और अप्रगतिशील दो ही पत्र कलकत्ते में समाचार-पत्रो के स्वातन्त्र्य के समय थे-एक 'जान बुल' और दूसरी बगला की 'समाचार चन्द्रिका'। 'जान वुल' ने जे० एच० स्टोक्वेलर के हाथ मे पडकर अपना नाम 'इग्लिशमैन' धर लिया। किसी प्रकार कुछ वर्ष इसके वीते और अन्त में 'स्टेट्समैन' ने इसे खरीद कर वन्द कर दिया।
गैगिंग ऐक्ट (गलाघोटू कानून) १८५७ के गदर के पहले भारत में बहुत से पत्र निकल चुके थे, पर इनका केन्द्र कलकत्ता ही था। १८५६ में लार्ड कैनिंग गवर्नर-जनरल होकर पाये थे और इसके एक वर्ष के अन्दर ही गदर हो गया था। अंगरेजो के अनुदार पत्र सरकार को हिन्दुस्तानियो के विरुद्ध भडकाते थे। यही नहीं, ठढे दिमाग से काम करने वाले लार्ड कैनिंग पर ऐसे कटाक्ष करते थे, मानो गदर के नेता यही थे । हिन्दुस्तानी पत्र भारतवासियो की निर्दोषिता सिद्ध करते थे। कलकत्ते के 'हिन्दू पैट्रियट' के सम्पादक हरिश्चन्द्र मुकर्जी और बम्बई के गुजराती पत्रो के सम्पादक विशेषकर दादाभाई नवरोजी अपने 'रास्त गुफ्तार' द्वारा सयत भाषा में सव आक्षेपो के उत्तर देते थे। फिर भी असाधारण उत्तेजना का वह समय था। इसलिए लार्ड कैनिंग ने सारे भारत के पत्रो पर १३ जून १८५७ को ऐडम रेगुलेशन लगा दिया, जो Gagging Act (गलाघोटू कानून) कहलाया। कलकत्ते के 'दूरबीन', 'सुलतान-उल-अखबार' और 'समाचार सुधावर्षण' पर मामले चले और 'फ्रेंड ऑव इडिया' को चेतावनी दी गई। इसने लिखा था कि आज भारत में आधा दर्जन भी यूरोपियन न होगे, जो लार्ड केनिंग के पक्ष मे हाथ उठावेंगे।
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