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________________ निवेदन जो किसान खेत पर घोर परिश्रम करके अपने खून को पसीना बना कर अन्न उत्पन्न करते हैं, जो मजदूर लोकोपयोगी वो मे अपना जीवन खपाते हुए भावी सामाजिक व्यवस्था के निर्माण के लिए अपनी शक्ति तथा समय को अर्पित करते हैं, जो ग्रामीण अध्यापक मगज पच्ची करके पचासो छात्रो को अक्षर-ज्ञान कराते है, जो बढई अथवा लुहार जनता के नित्यप्रति काम आने वाली चीजे बनाते हैं, अथवा जो पत्रकार या लेखक नाना प्रकार के कष्टो को सहते हुए सर्वघासारण को सात्त्विक मानसिक भोजन देते है वे सभी अपने-अपने ढङ्ग पर वन्दनीय है, अभिनन्दनीय है। परिश्रमी लेखक, निप्पक्ष अन्वेषक और ईमानदार पुस्तक प्रकाशक की हैसियत मे प्रेमी जी का सम्मान होना ही चाहिए। इन अभिनन्दनो में दो वातो का ध्यान रखना आवश्यक है एक तो यह कि सम्मान-कार्य उमव्यक्ति की रुचि, दृष्टिकोण तया लक्ष्य को ध्यान में रख कर किया जाय और दूसरी यह कि अभिनन्दन कार्य के पीछे एक निश्चित लोक-कल्याणकारी नीति हो। पाठक देखेंगे कि प्रेमी-अभिनन्दन-ग्रन्थ में इन दोनो वातो का खयाल रक्खा गया है। प्रेमी जी के विषय में कुल जमा ६२ पृष्ठ है । शेप पृष्ठ अन्य आवश्यक विषयो को दे दिये गये है । सच तो यह है कि प्रेमी जी के वार-बार मना करने पर भी उनकी इच्छा के सर्वथा विरुद्ध इस आयोजना को जारी रक्खा गया है। जनता की श्रद्धा से लाभ उठाये विना इस गरीव मुल्क मे हम अपने जनोपयोगी कार्य नहीं चला सकते, फिर साहित्यिक अथवा सास्कृतिक यज्ञो का सचालन तो और भी कठिन है। दरअसल बात यह है कि प्रेमी जी के प्रति लोगो की जोश्रद्धा है उसका सदुपयोग हमने इस ग्रन्थ मे कर लिया है। दान-सूची तथा लेख-सूची से पाठको को पता लग जायगा कि प्रेमी जी के प्रति श्रद्धा रखने वालो की सख्या पर्याप्त है । यद्यपि जो पैसा इस यज्ञ में व्यय हुआ है वह सव जैन समाज के प्रतिष्ठित सज्जनो का ही है--ग्रन्थ के शरीर के निर्माण का श्रेय उन्ही को है-तथापि ग्रन्थ की आत्मा का निर्माण सर्वथा निस्वार्थ भाव से प्रेरित विद्वानो ने ही किया है। इस यज्ञ के प्रधान होता डाक्टर वासुदेवशरण जी अग्रवाल रहे है, जो अपनी उच्च सस्कृति, परिष्कृत रुचि तथा तटस्थ वृत्ति के लिये हिन्दी जगत् मे सुप्रसिद्ध है। ग्रन्थ का तीन-चौथाई से अधिक भाग उनकी निगाह से गुज़रा है और शेप सामग्री को उनके विश्वासपात्र व्यक्तियो ने देस लिया है। श्री अग्रवाल जी जनपदीय कार्य क्रमके प्रवर्तक है और इस विषय मे उनके अनुयायी वनने का सौभाग्य हमे कई वर्षों से प्राप्त रहा है। विचारो के जिस उच्च धरातल पर वे रहते हैं, वहाँ किसी भी प्रकार का अविवेक, पक्षपात अथवा निरर्थक वाद-विवाद पहुँच ही नही सकता। ग्रन्थ में यदि उपयोगी मसाले का चुनाव हो सका है तो उसका श्रेय मुख्यतया अग्रवाल जी को ही है । यदि कागज़ की कमी न हो गई होती तो कम-से-कम चार सौ पृष्ठो की सामग्री इस ग्रन्थ मे और जा सकती थी। खास तौर पर वुन्देलखड के विषय में और भी अधिक लेख तथा चित्र इत्यादि देने का हमारा विचार था। इस ग्रन्थ के विपय में हमें जो अनुभूतियां हुई है उनके वल पर हम निम्नलिखित प्रस्ताव भावी अभिनन्दन ग्रन्यो के विपय में उपस्थित करते है (१) अभिनन्दन ग्रन्थ मे इक्यावन फीसदी पृष्ठ वन्दनीय व्यक्ति के जनपद के विषय मे होने चाहिए, पैतालीस फीसदी उसकी रुचि के विपयो पर और शेप चार फीसदी उसके व्यक्तित्व के बारे में। (२) विद्वत्तापूर्ण लेखो के माथ-साथ प्रसाद-गुणयुक्त सजीव और युगधर्म के अनुकूल रचनाएँ छापी जायें । भावी सामाजिक व्यवस्था और सास्कृतिक तथा साहित्यिक आयोजनामो को उचित स्थान दिया जाय ।
SR No.010849
Book TitlePremi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPremi Abhinandan Granth Samiti
PublisherPremi Abhinandan Granth Samiti
Publication Year
Total Pages808
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size34 MB
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