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प्रेमी-अभिनदन-प्रय भी हो रहा था। यह ग्रन्थ सन् १५५७ में छपा था और प्रश्नोत्तर के रूप में मुद्रित हुआ था। इस 'ईसाई धर्म के सिद्धान्त' पुस्तक का उल्लेख फ्रासिस द सौज नाम के पादरी ने अपने पोर्तुगीज़ भाषा के गन्थ 'ओरिऐति कोकिस्तादु-श्रा जेसुस क्रिस्तु' (Oriente Conquistado a Jesus Christo) में किया है। परन्तु ये दोनो ग्रन्थ अव नही मिलते। मगर गोवा के प्रथम आर्चविशप दो गास्पार द लियाव ने 'कोपेदियु स्पिरितुआल द हिद क्रिस्ता'
IESV.
COMPENDIO SPIRIT VAL DA VIDA Chrittaa, tiradode muitos autores pello primeiJO ARCEBISPO de Goa, e per eltę prégado no pri meiro anno a seusfregue. ses, peraglona chórra de IESU CHRISTO nollo SALVADOR, e edi ficaçam de suas OVELHAS.
Naleguinte folha se dostara o
conccudo neste Tratado.
कोपेंदियु पुस्तक का टायटिल पृष्ठ (१५६०) (Compendio Spiritual da vida Christa) नाम को पुस्तक लिखी थी। वह न्यूयार्क (अमेरिका) की पब्लिक लाइब्रेरी में मौजूद है । वह पुस्तक सेट पाल कॉलेज गोवा के इसी छापेखाने में सन् १५६० मे छपी थी।
इसी तरह इग्लैंड के ब्रिटिश म्यूजियम में 'कोलोकियुस् दुस सिप्लिस् इ द्रॉगस्' (Coloquios dos simples edrogas) नामक पुस्तक है। यह भी इसी छापेखाने में सन् १५६३ मे छपी थी। इसका विषय वैद्यक-शास्त्र और लेखक गासिय द ऑर्त (Garcia de Orta) है।
सेंट पॉल कॉलेज गोवा के छापेखाने में जो पुस्तकें छपी थी, वे प्राय इटेलियन या पोर्तुगीज भाषा में थी। इमलिए भारतीय भाषामो की दृष्टि से इस छापेखाने का खास महत्त्व नहीं है। इसका महत्त्व इसी में है कि यह हमको भारत में छापेखाने के आरम्भ का इतिहास बताता है।।
कुछ समय बाद गोवा के रायतूर (Rachol) के सेंट इग्नेशस कॉलेज मे एक छापाखाना और प्रारम्भ हुआ, जिसमें भारतीय भाषाओं में पुस्तकें छपने लगी।
+ Con I, Div I, para 23.