________________
१५४
प्रेमी-अभिनदन-ग्रंथ ।
"प्रियहरि २३ मात्रामो का छन्द । लक्षण-सप्त स्वर निधि यति अलकृत मजु 'प्रियहरि' गा ।
(७,७,६ पर यति, कुल २३ मात्राएँ, अन्त में गुरु) उदाहरण-"विश्वव्यापी वेदना यह प्रिय-विरह की है, अमित नभ में जो अगण्य स्वरूप रचती है !"
(गीताजलि'-अनुवाद) 'हरिगीति' २६ मात्रात्रो का छन्द
लक्षण-(गीति' के प्रारम्भ में एक गुरु) , • गुरु गीति के प्रारम्भ में घर, गाइए 'हरिगीति' । उदाहरण-"कुछ स्वर्ण सा, कुछ रजत सा, सित पीत असिताकाश ।"
('हरिगीतिका' का अन्त्य 'गुरु' हटाने पर यही छन्द बनता है ।) मधुमत २८ मात्रामो का छन्द
१४४
लक्षण-आज विद्या-रल मधुव्रत अन्त में मधुमय लगा गा।
(१४, १४ पर यति, अन्त मे मगण, यगण, या लघु या लघुगुरु या गुरु गुरु) उदाहरण-मै उषा सी ज्योति-रेखा कुसुम विकसित प्रात रे मन !
--'प्रसाद' मणिमाला २८ मात्रानो का छन्द लक्षण-विद्या, विद्या पर यतिघर गा युगल-सखी 'मणिमाला।
(१४, १४ पर यति, अन्त में गुरु गुरु) उदाहरण-जग के उर्वर प्रांगन में बरसो ज्योतिर्मय जीवन ।
बरसो लघु-लघु तृण तरु पर, हे चिर अव्यय, नित नूतन! बरसो फुसुमों में मधु वन प्राणों में अमर प्रणयधनस्मिति-स्वप्न अपर पलको में, उर अगों में सुख यौवन
('गुजन' पत) ('आंसू' . 'प्रसाद' का छन्द यही है । यह १४ मात्रा वाले 'सखी' छन्द (कलभूवन सखी रचि माया) का दूना है।)
मधुमालाहार २८ मात्रामो का छन्द (मधुमाता+हार) मधुमाला • (पीछे देखें) हार । १२ मात्रामो का एक चरण
___ दिनमणि सा हार लगा। उदाहरण-कोमल द्रुमदल निष्कम्प रहे, ठिठका-सा चन्द्र खडा माधव सुमनों में गूंथ रहा, तारो की किरन अनी
(यद्यपि 'अन्त्यानुप्रास नहीं है, परन्तु छन्द वही है)
('चन्द्रगुप्त' प्रसाद)