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हिन्दी कविता के कला-मण्डप
. .१५३ मधुमाला . १६ मायानो का यन्द । लक्षण-वसु-वमु यति वर 'मधुमाला' गा।
(८, ८ पर विराम, अन्त में गुरु) उदाहरण--में मधु-विक्रेता को प्यारी, मधु के घट मुझ पर बलिहारी।
('मवुवाला' 'वच्चन') कोकिल १६ मात्रानो का छन्द। लक्षण-सिद्धि मिद्धि घर गा चल 'कोकिल''
(८, ८ पर विगम अन्त में लघु) उदाहरण-गा कोकिल भर स्वर में कम्पन ,
झरें जाति-कुल वर्ण-पर्ण-घन , अन्धनीड मे रूढ़ रीति-छन , व्यक्ति राष्ट्रात राग-द्वेष-रण ।
झरें मरें विस्मृति में तत्क्षण ! गा कोकिल, बरसा पावक कण !
('युगान्त' पन्त) 'मधुकर' १६ मात्राओं का छन्द ।
लक्षण-४ चोकल, अन्त में मगण उदाहरण-मै प्रेमी उच्चादर्शों का
संस्कृति के स्वगिक स्पर्शों का, . जीवन के हर्ष-विमों का,
('गुजन' पन्त) 'यशोवरा' २२ मात्राओं का छन्द । लक्षण-मिद्धि मिद्धि रस यतिवर गानो 'यशोधरा' ।
(८,८, ६ पर यति, कुल २३ मात्राएँ, अन्त में 'गुरु') उदाहरण-यह जीवन भी यशोधरा का अंग हुआ,
हाय, मरण भी पाज न मेरे सग हुआ! सखि वह था क्या, सभी स्वप्न जो भग हुआ, मेरा रस क्या हुना और क्या रग हुमा!
('यशोवरा' गुप्त) (१८, १० मानानो पर यति वाले,) २४ मात्राग्री के 'रूपमाला' का दूसरा नाम 'गीति' रखना उचित होगा, क्योंकि उगमे 'हग्गिीति', 'हरिगीतिका' और 'गीतिका' का अनुवन्य वैठ मकेगा'गीति'
"अाज याया है दृगो में विभो पुण्य प्रकाशउपा-पाया से रंगा है आज हृदयाका !"