________________
तोलह ] (इन्स्टीट्यूट ऑव सोगल नाइतेज) जिस प्रकार का प्राणमय अध्ययन करती है उनका सूत्रपात् हमारे यहां भी होना आवश्यक है । एक-दो लेखो में उसकी कुछ दिया सुझाई जा सके तो आगे के लिए अच्छा होगा।"
इनी रूप-रेखा के पावार पर हम अथ की नामग्री का सग्रह कराना चाहने थे, लेकिन इनके लिए नमय अपेक्षित था। दूसरे कई एक मम्पादकी के पास समय की इतनी कमी थी कि इच्छा रखते हुए भी वे हम विप नहयोग नदेनके। डा० वेनीप्रमाद जी ने हमें आश्वासन दिया था कि यदि हम उनके 'कला'-विभाग की सामग्री एकत्र कर दें तो वे उनका सम्पादन कर देंगे और एक लेख अपना भी दे देंगे, लेकिन काल की क्रूर गति को कौन जानता है। देवीच में ही चले गये । इसी प्रकार प्रेमी जो के निकटतम व वाबू सूरजभानु जी वकील का देहावसान हो गया और वे भी हमें कुछ न भेज सके।
य में अठारह विभाग र गये थे और एक हजार पृष्ठ, लेकिन जब कागज़ के लिए हमने लिखा-पढी की तो युक्त-प्रात के पेपर-कन्ट्रोलर महोदय ने पहले तो स्वतत्र रूप से ग्रय-प्रकागन को अनुमति देने से ही इन्कार कर दिया, लेकिन बाद में जब उनसे बहुत अनुरोध किया गया तो उन्होने कृपा-पूर्वक अनुमति तोदे दी, पर कागज कुत सात सौ पृष्ठ का दिया। लाचार होकर हमें सामग्री कम कर देनी पडी और कई विभागों को मिला कर एक कर देना पड़ा। हमें इस बात का वडाही खेद है कि बहुत सी रचनाओं को हम इसमय में सम्मिलित नहीं कर सके और इनके लिए लेखको से समानार्थी हैं।
सहा वर्ष के परिश्रम से ग्रय जैसा बन सका, पाठको के सामने है । वस्तुत देवा जाय तो प्रेमी जी तो न नय को तैयारी में उपलन मात्र है। उनके बारे में केवल ६२ पृष्ठ रक्खे गये हैं। शेप पृष्ठों में विभिन्न विषयों की उपादेय सामी इकको की गई है । इसके मग्रह में हिन्दी के जिन साहित्यकारीने मह्योग दिया है, उन्हें तथा अपने सम्पादकमण्डल को हम हार्दिक धन्यवाद देते हैं । गुजराती, मराठी तया वगलाके विद्वान लेखको के तो हम विपत्पने आभारी हैं, जिन्होने इस आयोजन को अपना कर हमें अपना मक्रिय सहयोग प्रदान किया। कार्पमिति के अध्यक्ष डा. वानुदेवगरण जी अग्रवाल ने कई दिन देकर पूरे प्रय की मामी को देखा, उसके समादन में हमें योग दिया और समय-समय पर उपयोगी सुझाव देते रहे, तदयं हम उनके कृतज्ञ है। समिति के अन्य पदाधिकारियो को भी हम धन्यवाद देते है।
प्रय को चित्रित करने के लिए सर्वश्री असितकुमार हलदार, कनु देसाई, राल जी, रामगोपाल विजयवर्गीय, जे० एम० अहिवासी प्रभृति कलाकारो ने रगीन चित्र देना स्वीकार कर लिया था-अहिवाती जी तया श्री सुवीर खास्तगीर ने तो रगीन चित्र भेज भी दिये लेकिन पर्याप्त सावन न होने के कारण हम उनकी कृपा का लाम न ले सके। श्री सुवीर खास्तगीर ने कई चित्र हमें इस ग्रय के लिए दिये हैं, जिनके लिए हम उनके आभारी है। श्री रामचद्र जी वर्मा को भी हम धन्यवाद देते हैं, जिन्होने काशी नागरी प्रचारिणी सभा से लेलो के अत में देने के लिए कई ब्लॉक उवार दिलवा देने की कृपा की।
हम उन मावन-सम्मन्न वधुओ के भी अनुग्रहीत है, जिनको उदार सहायता के विना ग्रथ का कार्य पूर्ण होना असमव था । बन्धुवर धन्यकुमार जी जैन ने स्वय एक हजार एक रुपये देने के अतिरिक्त धन-संग्रह मे हमें पर्याप्त सहायता दी और हर प्रकार से वरावर सहयोग देते रहे। लेकिन वे हमारे इतने नजदीफ है कि धन्यवाद के रूप में हम कुछ कह भी तो नहीं सकते।
प्रारम से लेकर अंत तक प्रेरणा, सुझाव और महयोग देने वाले श्रद्धेय ५० बनारसीदास जी चतुर्वेदी तो इस आयोजन से इतने अभिन्न हैं कि उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करना महज़ पुष्टता होगी।
___इलाहावाद लॉ जर्नल प्रेन के प्रबंधक श्री कृष्णप्रसाद जी दर तया उनके कर्मचारियो का भी हम आभार स्वीकार करते हैं, जिनकी सहायता से अथ की छपाई इतनी साफ और सुन्दर हो सकी।