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चेतनकर्मचरित्र. चैतन सवसों कर जुहार । परम धरम धन धारन हार ॥ इनिज बल हंस करहिं आनंद । परम दयाल महा सुखकंद १७७
दोहा. इहि विधि चेतन जीतके, आयो व्रतपुरमाहि॥ . आज्ञाश्रीजिनदेवकी,नेकु विराधै नाहिं ।। १७८ ।। जिहँ जिह थानक काजके, कीन्हें सब विधि आय॥ अव भावै वैराग्यतहँ, सुनहु 'भविक' मन लाय ॥१७॥ दाल-पंचमहाव्रत मन धरो सुनि पानीरे, छांडि
गृहस्थावास आज सुनि प्रानीरे ॥ टेक ॥ . ते मिथ्यात्वदशा विपै सुन प्रानीरे, कीन्हें पाप अनेक आज, सुनि प्रानीरे ॥ भव अनंत जे ते किये सुनि प्रानीरे, रागद्वेप पर र संग, आज सुनि प्रानीरे ॥१८०॥ ज्ञान नेकु तोको नही सुनिए है तब कीने बहु पाप, आज सुनि प्रानीरे। ते दुख तोको देय हैं सुनि० ।
जो चको अव दाव, आज सुनिप्रानीरे ॥ १८१॥ अव्रतमें , जे किये सुनि० व्रत्त विना बहु पाप, आज सुनि प्रानीरे । देश विरतमें पांच जेसुनि० थावरहिंसालागि आजसुनि प्रानीरे॥१८॥ है किये कर्म तें अतिघने सुनिक्यों भुगते विनजाय,आजसुनपानीरे ॥ मोह महाहितु तै कियो,सुनि०वह तोकोदुख देय आज सुनिपानी॥ ॥१८३॥ जिहँ जिय मोह निवारियो सुनि० तिहँ पायो आनंद,
आज सुनि प्रा० ॥ मनवच काया योगसों सुनि० तें कीने बहु । ह कर्म, आज सुनिप्रानीरे ॥१८४ावे भुगते विन क्यों मिटै सुनि० जेवांधेतेंआप, आज सुनि पानी।जो तू संयम आदरैसुनि करै तपस्या घोर, आजसुनि प्रानीरे १८५ तौ सवकर्म खपायकें सुनि
(१) पांच गुणस्थानमें । (२) मित्र। , WORORVADODARARIAnuwar-DEOMARPROOPARDEnwar
Proviranapamoreparamparencorncomcorenavancorecommonawanemopanoos
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