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. चेतनकर्मचरित्र. इहिविधि जीतों परदलजाय। जो मोहि आज्ञा दीजे राय॥ तवै मोहनृप चिंतै सही । यह तौ वात भली इन कही ॥१६॥ सिद्धि करहु अप्रत्याख्यान लेहु सूर सँग जे बलवान ॥ इंहिविधिआयो पुरके माहि। ज्ञानीविन जाने कोउनाहि॥१३७॥ निजविद्या परकाशै सही । नानाविध क्रोधादिक लही ॥ • ताके भेदं अनेक अपार । कोलोकहिये बहुविस्तार ॥१३८॥
. . . दोहा. इहिविधि सव ही सैन ले, आयो अप्रत्याख्यान ।
अव्रतपुरमें पैठिके, करै व्रतनिकी हान ॥ १३९ ॥ ताके पीछे मोहनृप, आयो सव दल जोरि ॥ ___ महासुभट सँग सूर लै, चढ्यो सुमूंछ मरोरि ॥ १४०॥ कुमन जतूंस बुलायके, मोह कहै यह वात ॥
तुम सुधि लावहु वेगही, कहां सुभट वे सात ॥१४॥ है कुमन खबर पहिले दई, वे मूर्छित उन पास ॥ - कछु विद्या कीजे यहां, ज्यों वे लहैं प्रकास ॥ १४२॥
मोह करै विद्या विविध, रागद्वेष लै संग ॥ ___उनमें कछु चेतन भये, कछु रहे मूर्छित अंग ॥ १४३ ॥ है सुमन दूत सब ज्ञानपैं, कही मोहकी बात ।। * कहाँ रहे तुम वैठि वह, सुभट जिवावत सात ॥१४४ ॥ ( जो वे सात जिये कहूं, तो तुम सुनहो वात ॥ . चेतनके सब सुभट को, करि है पलमें घात ॥१४५ ॥
मोह जु फौजें जोरिके, आयो कर अभिमान ॥ - तुमहू अपने नाथको, खबरि पठावहु ज्ञान ॥ १४६ ॥
(१) पांचवें गुणस्थानमें. (२) गुप्तदूत. (३) उपशमरूप, MonopornROADPAWARDROMORPORT
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