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ब्रह्मविलास में
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चौपाई १५ मात्रा.
धीर ॥
॥
१२९ ॥
लरे ॥
१३० ॥
इहविधि मोह जोरि सब सैन। देशत्रते पुर बैठो ऐन ॥ करै उपाय अनेक प्रकार। किहिविधि ल्यों अन्नतपुर सार ॥ १२६ ॥ सुभट सात तिनको देखकरै । तिन विन आज निकसि को रै ॥ जो होते वे सूर प्रधान । तो लेते अत्रतपुर थान ॥ १२७ ॥ ऐसे वचन मोह नृप कहे । रागद्वेष तव अति उर दहे ॥ हा हा ! प्रभु ऐसें क्यों कहो । एक हमारी शिक्षा लहो ॥ १२८ ॥ सुभट तुम्हारे हैं बहु बीर । तिनमें जानहु साहस तिनको आज्ञा प्रभुजी देहु । इहविधि अत्रतपुर तुम लेहु तबै मोहनृप बीड़ा धेरै । कौन सुभट आगे है तब बोले अप्रत्याख्यान | मैं जीतूं अवके दलज्ञान ॥ कहै मोहनृप किंहिविधि वीर । मोहि बतावहु साहस बोले अप्रत्याख्यान प्रकास । सुनहु प्रभू मेरी अरदास ॥१३१॥ मैं अतपुरमें छिप जाएं । चेतन ज्ञान वसै जिह ठाउं ॥ संग लेय अपने सब लोग । नानाविधि परकासों भोग ॥१३२॥ उनके उपसम वेदकभाव । क्षयउपसम वसुभेद लखाव ॥ इनकैथिरताबहुकछुनाहिं । छिनसम्यकछिनमिथ्यामाहिं ॥ १३३॥ क्षायक एक महा जे जोर । पहिले प्रगटै ना उहि ओर ॥ तोलों देखहु मैं क्या करों । व्रतके भाव सर्वथा हरों ॥ १३४ ॥ अव्रतमें उपशम हट जाय । जिहँकर पापपुण्य मन लाय ॥ जब वह मगन होय इहि संग | जीत लेहु तवही सरवंग ॥१३५॥
धीर ॥
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(१) पंचमगुणस्थान में । ( २ ) चिंता । (३) अप्रत्याख्यानावर्णी कोष मान माया लोभ । (४) चेतनके, । (५) श्रावकके व्रत ।
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