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PROMPRERGPOSDEO-OPEOPopchappaMROROPER .................. चेतनकर्मचरित्र.
co m जाहु जाहु पापी सवै, चेतनके गुण जेह ॥ ___.मोको मुख न दिखावहू, छिनमें करिहों खेह ॥ ११६ ॥ मोहबचन ऐसे स्रये, सुनिके चल्यो विवेक ।
आयो राजा ज्ञान पै, कही वात सव एक ।। ११७॥ वह क्योंही भाजै नहीं, गहि वैव्यो यह टेक।।
लरिहों फोजें जोरिके, वोले दूत विवेक ॥ ११८ ॥ दूत वचन सुनिक हँसो, ज्ञान वली उर माहिं।
देखो थित पूरी भई, क्योंहू माने नाहिं ॥ ११९ ।। लेहु सुभट ! तुम वेगही, अवतपुर अभिराम ॥
रह्यो ऋर वह घेरिक, मेंटहु चाको नाम ।। १२० ॥ बढ़ी सैन सब ज्ञानकी, सूर वीर बलवन्त ॥ आगे सेनानी भयो, महा विवेक महंत ॥ १२१ ॥
करिखा छंद. * आय सन्मुख भये मोहकी फोजसों, भिड़नके मतै सव सूर गाढे । देख तब मोह अति कोहै, मनमें कियो, सुभट हलकारि रहे आप ठाढे ॥१२२।। सूर बलवंत मदमत्त महा मोहके, निकसि सब सैन आगे जु आये ॥ मारि घमसान महा जुद्ध बहु रुद्ध करि, एक ते एक सातों सवाये ॥ १२३॥ वीर सुविवेकने धनुपले ध्यानका, मारिके सुभट सातों गिरीये। कुमक जो ज्ञानको सैन सवसंगधसी,मोहकेसुभट मूर्छा समाये१२४५ से देख तव युद्ध यह मोह भाग्यो तहां, आय अवतहिं सब सूर जोरे, बांधकरमोरचेवहुरिसन्मुखभयो, लरनकी होसते करै निहोरे१२५
(१) चौथा गुण स्थान । ( २ ) सेनापति । (३) क्रोध। (४) मदोन्मत्त ।(५) मिथ्यात्य, सम्यमिथ्यात्व, सम्यक्प्रकृतिमिथ्यात्व और अनंतानुबंधी कोष मान माया
लोभ ये ७ प्रकृतियें । (६) उपशमित कियौं । (५) चौथे गुणस्थानमे। Sanocreenp/pcompahanepanacretoreparebarma
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