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ब्रह्मविलासमे
दोहा. नाम विवेक सु दूतको, लीन्हों ज्ञान बुलाय ॥ ___ जाय कहहु वा मोहको, भलो चहै तो जाय ॥१०६॥ जो कबहूँ टेढो बकै, तो तुम दीज्यो सोंसे ।
धिक धिक तेरे जनमको, जो कछु राखै होस ॥ १०७॥3 तेरो वल जेतो चलें, तेतो कर तू जोर ।।
वे चाकर सब जीवके, छिनमें करि हैं भोर ॥ १०८ ॥ ज्ञान भलाई जानकें, मैं पठयो तोहि पास ॥ चेतनको पुर छांडदे, जो जीवनकी आस ॥ १०९ ॥
सोरठा. चल्यो विवेक कुमार, आयो राजा मोह पै॥
कह्यो वचन विस्तार, भलो चहै तो भाजिये ॥१०॥ सुनके वचन हुताश, कोप्यो मोह महा बली ॥ छिनमें करिहों नाश, मो आगें तुम हो कहा? ॥ १११॥
दोहा. एकहि ज्ञानावर्णिने, तुम सब कीने जेर ॥
इतनी लाज न आवही, मुखहिं दिखावह फेर ।। ११२ ॥ काल अनंतहिं कित रहे, सो तुम करहु विचार ।। ___अब तुम में कूवत भई, लरिवेको तय्यार ॥११३॥ चौरासी लख स्वांगमें, को नाचत हो नाच ॥
वादिन पौरुष कितगयो, मोहि कहो तुम सांच॥ ११४ ॥ इतने दिनलों पालिकें, मैं तुम कीने पुष्ट ॥
तातें लरिवेको भये, गुण लोपी महा दुष्ट ॥१५॥ (१) कसम । (२) नष्ट । PROPORWARDARPAPARMANOPORames
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