________________
SUPanwarpepawanpramodrompoPRON
चेतनकर्म चरित्र.
Forpoornapo
तौ अरि वपुरे हैं किंह मात ।तम सम चूर करों परभात ॥ बोले वच संतोप रसाल । मो आगें वे कहा कंगाल ।। ५५ ॥ धीरज कहै मोसन को सूर पिलमें करहुँअरिन चकचूर ।। सत्य कहै मोम बहु जोर । जीतों वैरी कठिन करोर ॥ ५६ ॥ उपशम कहत अनेक प्रकार । मैं जीते वैरी सरदार ॥ दर्शन कहत एकही वेर जीतोसकल अरिनको घेर ॥ ५७ ॥ आये दान शील तप भाव । निश्चय विधिजानें जिनराव पारन पावहु नाम अपार । इहि विधिसकल सजेसरदारा॥५८॥ तवहिं ज्ञान चेतनसों कही। फौज तुम्हारी सव बन रही।
चेतन देखै नयन उघार । यह तो फौज भई तय्यार ॥ ५९॥ Bअवहीं मेरे सूर अनंत । ल्यावहु ज्ञान हमारे मंते ॥
शक्तिअनन्त लसें निज नैन । देखोप्रभू तुम्हारी सैन ॥ ६०॥ है अनंत चतुष्टय आदि अपार । सेना भई सबै तयार ॥ १ जुरे सुभट सब अति बलवंत । गिनती करत नआवै अन्त ॥११॥
दोहा. कहै ज्ञान चेतन सुनहु, रोप करहु जिन रंच ।।
एक वात मुहि ऊपजी, कहूं विना परपंच ॥ १२ ॥ कहै जीव कहि ज्ञान तू, कैसी उपजी वात ॥
तुम तो महासुबुद्धि हो, कहते क्यों सकुचात? ॥१३॥ तवहिं ज्ञान निःशंक है, बोले प्रभु सन वैन । चाकर एकहि भेजिये, गहि लावे सव सैन ॥ ६४॥
. सोरठा. कहा विचारो मोह, जिहँ ऊपर तुम चढ़त हो ॥
भेजह सेवक सोह, जीवित लावै पकरके ॥६५॥
(१) मंत्री। ARROPERTOOpepependepospaporporapan
Floodbanup/narenavrebappamoropanooscophagencouplessnacopanapost
ompanoranconcombappaorcospramanaorancornapoooo
-