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ब्रह्मविलासमें. .
सोरठा. सुनके चेतन राय, चित चमक्यो कीजे कहा ।। लीन्हों ज्ञान बुलाय, कहो मित्र कहा कीजिये ॥४५॥ तब बोलै यो ज्ञान, इनसों तो लरिये सही ॥ हरिये इनको मान, अपनी फौजें साजिये ॥ ४६॥
चौपाई (१५ मात्रा) तब चेतन बोले मुख वीर । तुमसे मेरे बड़े वजीर ॥ तो मो कहँचिंता कछु नाहिं। निर्भय राज करूं जगमाहिं ॥ ४७ ॥ हैं इनपै फौज करहु तय्यार । लेहु संग सब सूर जुझार ॥
तवैज्ञान सब सूर वुलाय । हुकम सुनायो चेतनराय ॥४८॥ हु है तैयार गहहु हथियार । कर्मनसों अव करनी मार ॥
सुनिकर सूरखुशी अतिभये अंतमुहूरतमें सज गये ॥४९॥ लेहु हाजिरी ज्ञान बजीर । कैसे सुभट बने सव वीर ॥ तबै ज्ञान देखै सब सैन । कौन कौन सूरा तुम ऐन ॥५०॥ म स्वभाव कहै मैं वीर मोहि न लागें अरिके तीर ॥
। मेरी अरदास ।छिनमें करूं अग्निकोनास ॥५१॥ है तब सुध्यान बोलै मुख बैन । हुकम तुम्हारे जीतों सैन ॥ हूँ
मोआगेंसब अरिनसि जाया सूर देखजिम तिमर पलाय ॥५२॥ है पुनि बोलो चारित बलवंत । छिनमें करहुं अरिन को अंत॥
अरु विवेक बोलै बलसूर । देखतमोहनसहिं अरिकूर ॥ ५३ ।। है तब संवेग कहै कर मान अरि कुल अवहिं करूं घमसान ।। तब उत्तम बोले समभाव । मैं जीते बांके गढराव' ।। ५४ ।। (१) सूर्यको।
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