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व्रतपचखान करै बहु भेदैं, इन संयुक्त महा सुख भुंज । तब तिहँ ध्यान धुरंधर कहिये, परमानंद प्राप्तिमें मुंज ॥५७॥ दव्वसंगहमिणं मुणिणाहा, दोससंचयचुदा सुदपुण्णा ॥ सोधयंतु तणुसुत्तधरेण णेमिचंदमुणिणा भणियं जं॥ ५८ ॥ कवित्त.
सकलगुणनिधान पंडितप्रधान वहु, दूषणरहित गुणभूषणसहित हैं । तिनप्रति विनवत नेमिचंद मुनिनाथ, सोधियो जुयाको तुम अर्थ जे अहित हैं ॥ ग्रंथ द्रव्य संग्रह सुकीनो मैं बहुतथोरो, मेरी कछु बुद्धि अल्पशास्त्र जो महित हैं । तातंजु यह ग्रंथ रचनाकरी है कछु, गुण गहि लीज्यो एती, विनती कहित हैं ॥ ५९ ॥ इति श्रीद्रव्यसंग्रहग्रंथे मोक्षमार्गकथनं तृतीयोऽधिकारः । दोहा - नेमचंद मुनिनाथने, इहविध रचना कीन ॥ गाथा थोरी अर्थ वहु, निपट सुगम करदीन ॥ १ ॥
छप्पय.
ज्ञानवंत गुण लहै, गहै आतमरस अम्रत । परसंगत सब त्याग, शांतरस वरं सु निज कृत || वेदै निजपर भेद, खेद सब तजें कर्मतन । 'छेदै भवयिति वास, दास सव करहिं अरिनगन ॥ इहविधि अनेक गुण प्रगट करि, लहै सुशिवपुर पलकमं । चिद्विलास जयवंत लखि, लेहु' भविक ' निज झलकमें ॥ २ ॥
दोहा. द्रव्यसंग्रह गुण उदधिसम, किहॅविधि लहिये पार । यथाशक्ति कछु · वरणिये, निजमतिके अनुसार ॥ ३ ॥
(१) प्रत्याख्यान त्याग ।
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