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चेतनकर्म चरित्र.
चौपाई १५ मात्रा.. . गाथा मूल नेमिचंद करी । महा अर्थनिधि पूरण भरी ॥ है बहुश्रुत धारी, जे गुणवंताते सव अर्थ लखहिं विरतंत ॥४॥ हमसे मूरख समझे नाहिं । गाथा पढ्न अर्थ लखाहिं ॥ काह अर्थ लखे वुधि ऐन । वांचत उपज्यो अति चितचैन ||५|| जो यह ग्रंथ कवितमें होयाती जगमाहिं पढ़े सब कोय ॥ इहिविधि ग्रंथ रच्यो सुविकास, मानसिंह व भगोतीदास ॥ ६ ॥ संवत सत्रहसे इकतीस, माघसुदी दशमी शुभदीस ॥ मंगल करण परमसुखधाम, द्रवसंग्रह्मति करहुं प्रणाम ॥ ७॥ इति श्रीद्रव्यसंग्रहमूलसहित कवित्तबंध समाप्तः । अथ चेतनकर्मचरित्र लिख्यते.
दोहा. श्रीजिन चरण प्रणाम कर, भाव भक्ति उर आन॥ ६ चेतन अरु कछु कर्म को, कहहुं चरित्र वखान ॥१॥ सोवत महत मिथ्यात में, चहुं गति शय्या पाय ॥
वीत्यो काल अनादि तह, जग्यो न चेतन राय ॥२॥ जवही भवथिति घट गई, काल लब्धि भइ आय ।। ६ वीती मिथ्या नीद तह, सुरुचि रही ठहराय ॥३॥
किये कर्ण प्रथमहि तहां, जाग्यो परम दयाल ॥ __ लह्यो शुद्ध सम्यक दरस; तोरि महा अघ जाल ॥४॥
देखहि दृष्टि पसारिके, निज पर सबको आदि । है यह मेरे सँग कौन हैं, जड़से लगे अनादि ॥५॥ तव सुवुद्धि बोली चतुर, सुन हो ! कंत सुजान ॥
यह तेरे सँग अरि लगे, महासुभट वलवान ॥ ६॥ FARPRIOROSPERIENDRAPAROOPPOOD0000
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