________________
छियालीसदोपरहित आहारशुद्धि.
दोष छियालिस टारकें, मुनि जो लेहिं अहार ॥ नाम कथन ताके कहूं, जिन आगम अनुसार ॥ २ ॥
5323
१४
२०९
चौपाई.
अस्थि धर्म सूखे अरु हरे । दृष्टि देख भोजन परिहरे ॥ उखली खोटे चक्की चलै । शिलापिसंती देखत टलै ॥ ३ ॥ गोवर थापै माटी छुवै । कोरे वस्त्र भींट जो हुवै ॥ चूल्हो जरतो नयन निहार । ता घर मुनि नहिं लेहिं अहार ॥ ४ ॥ शिरहिं नहाती दीखे कोय । सीस कंघही करती होय ॥ कच्चे पानी परसै अंग । ता घरतें मुनि फिरहिं अभंग ॥ ५ ॥ करवो खांडो दीसै कहीं । छन्नो फाटो है जो तहीं ॥ देत बुहारी दृष्टिहि परै । ताघर मुनि आयेतें फिरै ॥ ६ ॥ अन्नादिक सूकनको धेरै । मिथ्याती भेटै तिहँ घरै ॥ ओंटे कोय कपास निहार । ताघर मुनि फिर जाहिं विचार ॥ ७ ॥ भीटे पाक स्वान मंजार । रोमकँवल परसन परिहार ॥ अग्निदाह जो दृष्टिहि परै । रोवत सुनै अहार न करै ॥ ८ ॥ प्रतिमा भंग सुनै जे कान | शास्त्र जरै इम सुनै सुजान ॥ प्रतिमा हरी भयो भयज़ोर । ता घर आये फिरहिं किशोर ॥ ९ ॥ विनधोये पट पहिरे होय । पड़िगाहैं श्रावक जो कोय ॥ ता कर लेय अहार न साध । अशुचिदोष लागै अपराध ॥ १० ॥ कर्कश वचन सुनहिं विकराल । विनयहीन जो हो अदयाल ॥ लागे चोट ललाटहिं पेख | फिरहिं साधु छर्दित नर देख ॥ ११ ॥ विकलत्रय आवै तिहँ ठौर । नख केशादि अपावन और ॥. पानी बूंद परै आकास । ताघर मुनि फिरजाहिं विमास॥१२॥
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ