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PROPORPIONORMERGENROSCOPeopanwarw/am/MODA १२०८
ब्रह्मविलासमें.. बाईसपरीसहविजयी मुनिराजकी स्तुति
कुंडलिया. महा परीसह वीस द्वय, तिहँ जीतनको धीर । धन्य साधु संसार में, बडे सूरवर वीर ।। व सूरवर वीर, भीर भवकी जिह टारी। कर्म शत्रुको जीत, भये शिवके अधिकारी ॥ धारी निजनिधि संच, पंच पदकोजिहँ लहा। भैया करहि प्रणाम, परीसह विजयी सु महा ।। २८ ॥
, छप्पयः सत्रहसे उनचास मास, फागुण सुख कारी। सुदि वारस गुरुवार, सार मुनि कथा सवारी ॥ विकट परीसह जीत, होत जे शिवपदगामी ।
ते त्रिभुवनके नाथ, प्रगट जग अंतरजामी । तिहँ चरन नमत हिरदै हरखि, कहत गुननकी माल यह । कवि भैया द्वैकर जोरके, वंदन करहिं त्रिकाल लह ॥ २९ ॥
हृदयराम उपदेशतें, भये कवित्त ये सार । मुनिके गुण जे सरदह, ते पावहिं भव पार ॥३०॥
इति बाईस परीसह कवित्तबंध. ___ अथ मुनिके छियालीसदोषवर्जितआहारवि
घिवर्णन लिख्यते. .
UpavasandeshpandyaGUdayGUAGVODE
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दोहा.
8. अरहँत सिद्ध चितारचित, आचारज उवझाय ।
साधुसहित वंदन करों, मनवच शीस नवाय ॥१॥ MoRRRRRRRPOUDEDoDARPARDARPopm