________________
. ब्रह्मविलासमें
wwwraaniwww
roopanorancorena000-00/norma/docoopencomcoreocc00000000onepanacpompos
ಇpgmessage २०६
जब थिर होहिं मुनिंद, कष्ट किन आवहिं केते ।
जब थिर होहिं मुनिंद, भावसों सह जु तेते ॥ इम सहत कष्ट मुनिराज अति, रोगदोप नहिं धरत मन । उतकृष्ट होहिं इक बेर जो, सब उनईस परीस भन ॥ २१ ॥
१७. कुवचनपरीसह-छप्पय. कुवचन बान समान, लगै तिहिं मार गिरावहिं। कुवचन अगनि समान, पैठि गुन पुंज जलावहिं ।। कुवचन बज्र विशाल, भाव गिरि ढाहै पलमें।
कुवचन विषकी झाल, मोह दुख दै बहु कलम ॥ कुवचन महान दुख पुंज यह, लगे बचें नहिं जगत जन । 'भैया' त्रिकाल मुनिराज तिह, जीतलहै निज अखय धन ॥२२
१८. अनाचीपरीसह घनाक्षरी ( ३२ वर्ण) अजाची धरत व्रत जाचना करत नाहि, इंद्री उमंग हरत महा संतोष करकें । रागादि टरत भाव क्रोधादिवंध गरत, वरत हुस्वभाव शुद्ध मनोविकार हरकें ॥ मरनसों डरत न करत तपस्या जोर, दरत अनेक कष्ट क्षमा खडूग धरके । दया भंडार भरत वरत सु साधु ऐसें, 'भैया' प्रणाम करत त्रिकाल पांय परकें ॥ २३ ॥ .
१९. अज्ञानपरीसह-छप्पय । सम्यक ज्ञान प्रमान, होहिं मुनि कोय तुच्छ मति । सुनहिं जिनेश्वर वैन, याद नहिं रहै हृदय अति ॥ ज्ञानावरण प्रसाद, बुद्धि नहिं प्रगटै बाकी ।
पूरब भव थिति बंध, इहाँ कछु चलत न ताकी ॥ Mar-20000/pop/BOARDonwapcoooo
Epranamawranapchapranapanasamwantwanolenolnapanaanawantwanorantwanpower