SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यशोविजय [ ५९ ] (५४) बाद बादीसर ताजे, गुरु मेरो गच्छ राजे । पंच महाव्रत जहाज, सुधर्मा ज्युं सवायो हे || बा० १ ॥ विद्या को बडो प्रताप संग, जल ज्युं उठत तुरंग । निरमल जेसो संग समुद्र कहायो हे ॥ बा० २ ॥ सत्त समुद्र भरयो, धरम पोत तामें तरयो । शील सुखान वालम, क्षमा लंगर डारचो हे ॥ वा०३॥ सहड संतोष करी, तपतो तपी ह्या भरी । ध्यान रंजक धरी, देत मोला ग्यान चलायो हे ॥ वा० ४ ॥ एसो झहाज क्रिया काज, मुनिराज साज सजो । दया मया मणि माणिक, ताहि में भरायेो हे ॥ चा० ५ ॥ पुण्य पवन आयो, सुजस झहाज चलायो । प्राणजीवन एसो माल, घर बेठे पायो हे ॥ चा० ६ ॥ :
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy