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विनयविजय
[३५] (३२) राग भूपाल तथा गोडी-तीन ताल
प्यारे काहेकुं ललचाय ॥ टेक ॥. या दुनियां का देख तमासा, देखत ही सकुचाय ॥ प्या० १॥ मेरी मेरी करत हे बाउरे, फीरे जिउ अकुलाय । पलक एक में बहुरि न देखे, जल बुंद को न्याय ॥ प्या०२॥ कोटि विकल्प व्याधि की वेदन, लही शुद्ध लपटाय । ज्ञान कुसुम की सेज न पाइ, रहे अघाय अघाय ॥ प्या० ३॥ किया दोर चिहुं ओर जोरसे, मृगतृष्णा चित्त लाय । प्यास बुजावन बुंद न पायो, यौहि जनम गुमाय ॥ प्या० ४॥ सुधा सरोवर हे या घटमें, जिसने सब दुःख जाय । विनय कहे गुरुदेव दिखावे, जो लाउ दिल ठाय ॥ प्या० ५॥