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धर्मामृत
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राग कौशिया-तीन ताल
कुण जाणे साहेबका वासा, जिहां रहता हे साहिब साचा ।
कु० ॥ टेक ॥ साधु होय केइ जलमें बूडे, जिम मछली का है जलवासा ।कुं० १॥ बामण होय कर गाल बजावे, फेरे काठ की माल तमासा । ' गौमुखि हाथे होठ हलावे, तिणका साहिब जोवे तमासा ।कु० २॥ मुल्ला होय कर बांग पुकारे क्या कोइ जाणे साहिब बहेरा। कीडी के पग नेउर वाजे, सो बी साहिव सुनता गहेरा ॥ कु०३॥ कंठ काठ केइ मुहडो बांधे, काला चीवर पहरे तमासा । छोत अछोत का पानी पीवे, भक्ष अभक्ष भोजनको आसा कुं०४॥ साधु भए असवारी बेसे, नृप पर नीति करे सुख खासा । पंचाग्नि केइ ताप तपत हे, देह खाख रासभ पर जासा॥ कु० ५॥ आठ दरव आगल केइ राखे, देव नाम परसाद लगाता। घंट बजाडो आपहिं खावे, नितनित साहिब कुं दिखलाता |कु०६॥ सरवंगी जे सबकुं माने, अपनी अपनी मतिमें बहुरा । साहेब सब नटवाजी देखे, जग जन कारज वस भयावहुरा ।।कु०७॥ इमकर नहिं कोइ साहेब मिलता, जगमें पाखंड सर्व ही कीता। चारित्र ज्ञानानंद विना नहीं, समजो जगमें तन कोई मीता कु०८||
स खासा ।