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ज्ञानानन्द
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राग आशावरी-तीन ताल
[९]
अवधू सुता क्या इस मठ ॥ अ० ॥ टेक ॥
इस मठका हे कवन भरोसा, पड जावे चटपटमें ॥ अ० ॥ छिनमें ताता, छिनमें शीतल, रोग शोग बहु मठमें ॥ अ० १ ॥
पानी किनारे मठका वासा, कवन विश्वास ए तटमें । अ० । सूता सूता काल गमायो, अज हुं न जाग्यो तुं घटमें ॥ अ० २ ॥
घरटी फेरी आटो खायो, खरची न बांधी वटमें । अ० । इतनी सुनी निधि चारित्र मिलकर, ज्ञानानंद आए घटमें || अ०३ ||