________________
.
[२१०
धर्मामृत भजन ८८ वां २३०. नांणे-न लाना । न+आंणे-नांणे । सं० आनयति-प्रा० आणेइ-आणे-आंणे । .
२३१. अडिखम-समर्थ-बलवान्
सं०-क्षम-प्रा०-खम । 'खम' का पूर्वग 'अडि' की व्युत्पत्ति अवगत नहि है। संभव है कि सं० 'आढयक्षम' शब्दसे प्रस्तुत 'अडिखम' का संबंध हो : स०-आढयक्षमअढयक्षम-अढिअखम-अडिअखम-अडिखम । 'आढयक्षम माने समर्थतम ।
२३२. आखडे-परस्पर मारामारी करे
'आखडे' के मूलमें "स्खदिष् खदने" वा "खिट उत्त्रासे" वातु का संभव है-(हैम धातुपारायण भ्वादि १००५, १७८)
'खदन'-विदारण करना और 'उत्त्रास'-त्रस्त करना । प्रस्तुत में दोनों धात्वर्थ घटमान है। सं० स्खद-आ+स्खद् । प्रा० अक्खद-अक्खड-अक्खडइ-आखडइ-आखडे । अथवा खिट-आ+खिट-आखेट प्रा० आखेड। आखेडइ-आखडइआखडे । 'खिट' की अपेक्षा 'स्खद् से लाना ठीक लगता है।
भजन ८९ वां २३३. मरद-पुरुष । सं० 'मयं' और प्रस्तुत 'मरद ' में अक्षरसाम्य और