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धर्मामृत श्लो० ६६) “गौः सौरभेयी माहेयो माहा" -(हैम अभिधान चिंतामणि कांड ४ श्लो० ३३१)। .
२२५. माखण-मक्खन . .
सं० म्रक्षण प्रा० मक्खण-माखण । अमरकोश और हैमकोश दोनोंमें 'म्रक्षण' शब्द तो है परंतु वहां उसका अर्थ तैल-स्नेह-किया गया है। "म्रक्षणाऽभ्यञ्जने तैलम्' - (अमरकोश वैश्यवर्ग श्लो० ५०) "तैलं स्नेहोऽभ्यञ्जनं च " (हैम आभधान चिंतामणि कां० ३ श्लो० ८०) अमरकोश का टीकाकार तो कहता है कि 'म्रक्षण' इत्यादि उक्त श्लोक अमरकोश में मूलमें नहि है किंतु प्रक्षिप्त है: "म्रक्षण" इत्यर्ध क्षेपकम् "-(अमरकोश टीका) । जैन ग्रंथोमें 'मक्खन ' शब्द 'माखन' के अर्थ में आता है इसको देखकर 'म्रक्षण' से 'माखण' की कल्पना सूझी है। संस्कृत के हैम धातुपाठमें भी 'मक्ष धातु 'स्नेह अर्थ में नहि मिलता। " म्रक्षण म्लेच्छने" "म्रक्ष संघाते" (धातुपारायण चुरादिगण १४९, भ्वादिगण ५६८) इस प्रकार एक 'नक्ष' धातु का ‘म्लेच्छन' अर्थ है और दूसरे का 'संघात । परंतु 'स्नेह अर्थ में 'म्रक्ष धातु होना ही चाहिए क्योंकि आचार्य हेमचंद्र अपने प्राकृत व्याकरण में "म्रक्षेः चोप्पड:-(८-४-१९१) सूत्र बनाकर 'म्रक्ष' और 'चोप्पड' को पर्यायरूप बताते हैं। कितनेक धातु सौत्र याने सूत्रोक्त होते