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धर्मामृत भजन ८३ वां २१०. एळे-(गुज०) कीडे की माफक । सं० इलिका-इलिकायाः प्रा० इलिआए-एळे । ...
'ए' शब्द 'व्यर्थ' को बताता है। 'इलिकायाः' इलिका के समान-जिस प्रकार 'इलिका' का जन्म व्यर्थ है इसी प्रकार आत्मज्ञान के विना मानव का भी जन्म व्यर्थ है यह भाव “एळे' शब्द का है । 'इव' शब्द अध्याहृत है ।
२११. मावठा (गुज०) माघमास की वृष्टि । सं० माघवृष्ट-प्रा० माहवटू-मावटुं। २१२. वूठी-बरसना-वृष्टि हुई। . सं० वृष्ट प्रा० वुद्ध स्त्रीलिंगी-बुट्ठी-चूठी। . २१३. लोचन (गुज.) उखाडना । सं० 'लुञ्चन' का अपभ्रष्ट लोचन ।
भजन ८४ वां २१४. हैडं (गुज०) हृदय ।
सं० हृदय-प्रा० हिअय । स्वार्थिक 'ड' लगने से 'हिअयड' इस पर से हैहूं ।
२१५. करेश (गुज०) करेगा। "