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________________ ... धर्मामृत [१९२] १८६) धातु से 'पाश' शब्द बना है। 'पश' माने बांधना। १५१. बिकानी-जिस का वेचाण हुआ ऐसी-बिकः गई। सं० वि+की+ना-प्रा० विक्किण । प्रस्तुत 'विकानी' कोः । प्रकृति प्रा० 'विकिण' है। भजन ४२ वां १५२. पखालो-साफ करो . ___ सं० प्रक्षालयतु-प्रा०-पक्खालउ-पखालउ--पखालो। 'प्र' के साथ 'क्षल' धातु का आज्ञार्थ तृतीय पुरुष एकवचन । "क्षलण शौचे"-(धातुपारायण चुरादिगण अंक १२१) भजन ४३ वां १५३. समजल-शमरूप पाणी १५४. मयल-मेल | मयल सं० मलिन प्रा० मइल मेल 'मलिन' में 'ल' और 'न' दोनों समान स्थानीय (दत्य अथवा नासिका स्थान ) होने से एक-पूर्व-'ल' लुप्त हो गया हो और फिर शेष 'न', 'ल' के रूप में आ गया होः मलिनमइन-मइल । वाग्व्यापार की प्रक्रिया कहीं कहीं विलक्षण माल्टम होती है।
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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