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जाम
[१८१] मागधीप्राकृत में प्रथमा विभक्ति में 'समणे' 'महावीरे' इत्यादि लक्ष्यो में 'ए' प्रत्यय का व्यवहार है । प्रस्तुत 'सळूने' में यही "ए' प्रत्यय का संभव है।
११८. ताल-तेरा। गुजराती-तारा । 'र' का 'ल' और 'ल' का 'र' सर्वत्र बनता रहता है । ११९. जाम-प्रहर ।
सं० याम-प्रा० जाम । आदि के 'य' के स्थान में प्रायः 'ज' का उच्चारण अद्यावधि प्रचलित है । जो (यः) जथा (यथा) जथारथ (यथार्थ) जमुना (यमुना) इत्यादि ।
१२०. जिउ-जीव । सं० जीवकः प्रा० जीवओ-जीवउ-जीवु-जीउ-जिउ । १२१. मगन-आसक्त ।
सं०-मग्न । 'अ' बीचमें आने से 'मगन' । मूलधातु 'मस्ज' है जिसका 'मजति' 'निमजति' रूप बनता है । "टुमम्जोत् शुद्धौ” “शुद्धया स्नानं ब्रुडनं च लभ्यते"-(धातुपारायण तुदादिगण अंक-३८) यद्यपि 'मस्ज' धातु का अर्थ 'शुद्धि' है तथापि 'शुद्धि' शब्द 'स्नान' और 'बुडना' दोनों का लक्षक है यह हेमचंद्र का उक्त कथन ख्याल में रहे ।
भजन ३२ वां १२२. वाउरे-मूरख-वायडा ।
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