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धर्मामृत गूजराती में इसी अर्थ में 'भुख्या' शब्द प्रचलित है। उसका । मूल भी 'भुक्खि ' में है। 'भूख' शब्द का मूल 'बुभुक्षा है: बुभुक्षा-बुहुक्खा-भुक्खा-भूख । 'भुक्खा' शब्द को आचार्य हेमचंद्रने देश्य माना है: "छुहाए भुक्खा"-(देशीनाममाला वर्ग ६, गाथा १०६) पूर्वोक्त प्रकार से 'भुक्खा' शब्द की व्युत्पत्ति स्पष्ट प्रतीत होती है फिर उसको देश्य गिनने का कारण नहि जान पड़ता है। 'बुभुक्षित' और 'बुभुक्षा इत्यादि में मूल धातु 'भुज' है यह ख्याल में रहे।
९१. जालम-लुच्चा।
सं० 'जाल्म' में 'ल' और 'म' के बीच 'अ' आ जाने से जालम' शब्द आ सकता है। संस्कृत कोशोमें 'जाम' और नीच' दोनों को समानार्थक बताया है: “ नीचः प्राकृतश्च पृथग्जनः । निहीनः अपसदः जाल्मः"--(अमरकोश शूद्र वर्ग कांड २, श्लो० १६) हेमचंद्र ने तो अपने अभिधान चिन्तामणि कोश में प्रस्तुत शब्द को मूर्ख का पर्याय कहा है (कांड ३, श्लो० १६) यह शब्द मूल से संस्कृत है वा अन्य भाषा का है ? यह विचारणीय है।
९२. तालम-धूर्त-ठग। . 'तालम'. की व्युत्पत्ति ज्ञात नहि वा यह शब्द परभाषा का प्रतीत होता है। 'जालम' और 'तालम' में अर्थसाम्य है।
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