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धर्मामृत ७१. बहेरा-बधिर-कानों से न सुन सके ऐसा । सं० बधिर-प्रा० बहिर । 'बहिर' से 'बहेरा' वा 'बेरा' । ७२. नेउर-पेर का आभूषण-झांझर . सं० नुपूर-प्रा० नेऊर-नेउर । ७३. वाजे-बजता है। सं० वाचते-प्रा० वजए-बाजे । 'वागे' (गूज०)
'बजना' और (गूज०) 'वागवु' ए दोनों क्रियापदां का मूल प्रा० 'वज्ज' में है और वह 'वज्ज' संस्कृत 'वायते' के 'वाद्य अंश का ही रूपांतर है।
७४. गहेरा-गभीर - सं० गभीर-प्रा० गहीर-गहेरा-घेरा । ।
७५. पहरे-वस्त्र पहिरे
सं० परिदधाति प्रा० परिहाइ-पहिराइ-पहिरइ-पहिरेपहेरे । 'परिहाइ' में 'र' और 'ह' का व्यत्यय होने पर 'पहिराई __ पद आता है।
७६ छोत-अछोत
प्रस्तुत में 'छोत' शब्द स्पृश्य जातिका वाचक है और 'अछोत' शब्द अस्पृश्य जाति का। भजनकार ज्ञानानंद कहते हैं कि कितने ही लोग पानी पीना इत्यादि क्रिया में 'छुवा अछुवा' के विचार को प्रधान रखते हैं अर्थात् अन्य सदाचार हो या न