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धर्मामृत
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( भुवेर्हो - हुव- हवाः ८ -४ - ६० हेमचंद्र प्राकृत व्याकरण ) ऐसे तीन धातु का व्यवहार है । उक्त ' होय छे' का मूल, इन प्राकृत धातुओं में है :
होअइ
-होय छे ।
होइ
प्रस्तुत पढ़ो में कई जगह 'हे' अथवा 'है' क्रियापद का प्रयोग पाया जाता है उसका मूल भी प्राकृत का 'हुव' अथवा 'हब' धातु है :
हुवइ - इ - - अथवा है । हवइ-इ-ह्वे अथवा है ।
३. उठ उठ खडा हो ।
,
सं० उत्+स्था - प्रा० उत्था । प्रस्तुत ' उत्था' उपर से . ' उठना ' और गूजराती 'ऊठवुं ' क्रियापद आया है । ' उठ क्रियापद ' उठना ' का आज्ञार्थ वा विध्यर्थ रूप है। आचार्य हेमचंद्र "उद : ठ - कुक्कुरौ " – ( ८-४- १७ प्राकृतव्याकरण) सूत्रमें कहते हैं कि 'स्था' धातु जब 'उत्' के साथ हो तब उस के 'ठ' और 'कुक्कुर' ऐसे दा आदेश होते है । इसमें 'ठ' आदेश तो वाग्व्यापार के अनुसार है अर्थात् प्रस्तुत सूत्रमें आचार्य ने केवल वाग्व्यापार का ही अनुवाद किया है