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कवि अमरचन्दजी
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राग परज
धर्मपथ ढूंढा नहीं धार्मिक हुआ तो क्या हुआ; आत्महित चर्या नहीं आस्तिक हुआ तो क्या हुआ । सप्तभंगी रट-रटा कर स्याद्वादी बन गया; धर्म-द्वेष मिटा नहीं आहत हुआ तो क्या हुआ । मान कर भी पश्यतः प्रविनष्ट क्षणभंगुर जगत् ; 'मैं' का विष उतरा नहीं सौगत हुआ तो क्या हुआ।
'विश्व का प्रत्येक प्राणी विष्णु ही का रूप है।' कार्य से झलका नहीं वैष्णव हुआ तो क्या हुआ। पांच वक्त नमाज पढता डर खुदा की मार से; जुल्म से डरता नहीं मुस्लिम हुआ तो क्या हुआ ।
बन्धुता के भाव से निःस्वार्थ दुःखियों का अमर दुःख दूर किया नहीं क्रिश्चियन हुआ तो क्या हुआ।