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धर्मामृत (८२)
राग भैरवी-तीन ताल संत परम हितकारी, जगत माँही ।। ध्रु० ॥ प्रभुपद प्रगट करावत प्रोति, भरम मिटावत भारी ॥ १॥
परम कृपालु सकल जीवन पर, हरि सम सब दुखहारी ॥२॥
त्रिगुणातीत फिरत तन त्यागी, रोत जगत से न्यारी ।। ३ ॥
ब्रह्मानंद संतन की सोबत, मिलत है प्रकट मुरारी ॥ ४ ॥