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प्रस्तुत संग्रह में दूसरे ही आधार का विशेष उपयोग किया है तो भी साथ साथ में यथाप्राप्त संवादी प्रमाण भी दिये गए हैं । केवल अक्षरसाम्य का आधार नहीं लिया है । केवल अक्षरसाम्य का आधार व्युत्पत्ति को भ्रांत बनाता है इससे इसको हेच समझ कर प्रस्तुत में अनुपयुक्त समझा गया है । केवल प्रथम आधार से काम करने में अधिकाधिक समय अपेक्षित है इतना समय सुलभ न था इससे प्रथमाधार को छोडना पडा ।
अधिक सावधानी रखने पर भी व्युत्पत्ति की योजना में असंगतता रहने का संभव अवश्य है । इससे विद्वज्जन इस विषय में हमें सूचना करके अवश्य अनुगृहीत करें ।
संपादक गूजराती है। प्रस्तुत पुस्तक के व्युत्पत्तिप्रकरण में आई हुई हिंदी भाषा भी उनकी गूजराती हिंदी होने से सर्वथा शुद्ध न हो तो हिन्दी भाषाभाषी साक्षरगण उदारता से क्षमा -करेंगे ।
१२ व भारतीनिवास सोसायटी
बेचरदास ।
एलिसव्रिज
अमदावाद
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