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संग्रह करने में आश्रमभजनावलि' से सहायता मिली है इससे भजनावलि के संपादक, साभार स्मरणीय है और ‘विनयविलास' वा 'जसविलास' नामक एक मुद्रित जैनसंग्रह से भी सहायता प्राप्त हुई है । उक्त विलासद्वय की पुस्तक हमारे पास न थी परंतु भावनगरवाले धर्मनिष्ठ सुप्रसिद्ध शेठ कुंवरजीभाई आनंदजीभाई से हम को वह पुस्तक मिली थी इससे हम शेठजी कुंवरजीभाई के भी अनुगृहीत हैं ।
भजन के एक भी राग को हम नहीं जानते किन्तु आश्रमवासी सुप्रसिद्ध संगीताचार्य पंडित नारायण मोरेश्वर खरे महोदय ने भजनों के सव राग निश्चित कर : दिये हैं एतदर्थ उनकी भी अनुगृहीति उल्लेखनीय है । खेद है कि जव प्रस्तुत संग्रह प्रकट हो रहा है तब श्रीमान् खरेजी इस. लोक में नहीं है।
प्रस्तुत सग्रहमें भजनों के उपरांत भजनो में आए हुए कितनेक प्राचीन शब्दों की व्युत्पत्तियां, और समझ भी दी गई है । इससे जो भाई व्युत्पत्तिशास्त्र का रसिक होगा उनको व्युत्पत्तिशास्त्रविषयक रसवृद्धि होने की संभावना है। - शब्दों की व्युत्पत्ति को प्रामाणिक बनाने के लिए मुख्य आधार है दो--
(१) व्युत्पाद्य शब्दमूल रूप से लेकर आधुनिक रूप -तक के तमाम रूपों की संवादी आधार के साथ --- संग्रह ।
(२) अर्थसाम्य को आधार भूत रख कर और उच्चारणजन्य विविध वर्णपरिवर्तन के नियमों से मर्यादित रह कर व्युत्पाद्य शब्द के मूल रूप से लेकर आधुनिक रूप तक का संग्रह ।