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धर्मामृत (७२)
राग जयतिश्री-तीन ताल जैसे राखहु वैसेहि रहौं । जानत दुख सुख सब जनके तुम मुखतें कहा कहौं । कबहुंक भोजन लहौं कृपानिधि, कब हूँ भूख सहौं कबहुँक चढौं तुरंग महागज, कबहुँक भार बहौं । कमलनयन घनश्याम मनोहर, अनुचर भयो रहौं । मुरदास प्रभु भक्त कृपानिधि, तुम्हरे चरन गहौं ।