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________________ सांकळचंद ____[८१] गायने खावा चारो जोइए, खेतर पंचे आप्यु: हळ कोदाळी साधन जाच्यां, दाटयु में बापर्नु दापुं । राज०० ७ रात दिवस महायत्न करीने, खेड खातर करी वाव्यु: कणबीज बोयां ध्यान भूल्यो हुं ध्यान खेतरतुं में ध्याव्युं । राजक०८ भीष्म दुकाळ पडयो आ वरसे, पाशेर जार न पाकी; चार थई ते गाये खाधी, महेसुल रही गयुं वाकी। राज०० ९ गाय ने विल्ली नाशी गयां बे, कफनी ने हुं पकडायां: वांक नथी कांई मारो साहेब, हुं निर्दोष छु राया । राज०० १० कफ़नीनी कूडी मायामां, मार में खाधो भारी; योग ध्यान ने भान भूल्यो हुं धिक माया गोझारी । राज०० ११ 'जा, कफनी हवे काम न तारु, हवे दिगम्बर थईशं; तजी संसारनी कूडी माया, प्रभुने शरणे जईशुं । राजक० १२ संन्यासीनी वात सुणीने, हाकम विस्मय पाम्यो खेडुत संन्यासीने छोड्या, चिन्तास्वरूप विरान्यो । राज००० १३ छोडी कफनीनी मोटी उपाधि, बगडी बारानी वाजी; सांकळचंद संसार उपाधि, क्रोड गमे रही गाजी। राजक० १४
SR No.010847
Book TitleBhajansangraha Dharmamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherGoleccha Prakashan Mandir
Publication Year
Total Pages259
LanguageHindi Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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