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धर्मामृत
(६२) राग धनाश्री-तीन ताल
अब हम अमर भये, न मरेंगे। या कारन मिथ्यात दियो तज, क्योंकर देह धरेंगे ?
॥ अब० ॥१॥
राग दोष जग बंध करत है, इनको नाश करेंगे । मर्यो अनंत काल ते प्रानी, सो हम काल हरेंगे।
॥ अब० ॥ २ ॥ देह विनाशी, हुं अविनाशी, अपनी गति पकरेंगे। नासी नासी हम थिरवासी, चोखे है निखरेंगे।
॥ अब० ॥ ३ ॥ मर्यो अनंत वार बिन समज्यो, अब सुख दुःख बिसरेंगे। आनन्दघन निपट निकट अक्षर दो, नहीं सुमरे सो मरेंगे।
। अब० ॥४॥
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