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(ख) चीत हुई। बातचीत खुलकर हुई और मैं मनमे प्रसन्नता लेकर लौटा। उस दिनसे मैं तुलसीजीके प्रति अपने में आकपण अनुभव करता हूं और उनके प्रति सराहनाके भाव रखता हूं। किसी कारणसे वह सराहना कम नहीं हो सकी है और उस परिचयको में अपना सद्भाग्य गिनता हूं। ___अनेक बन्धुओं और हितैपियोंको यह बात समझ नही
आती। वह कर्मशील है और बुद्धिवादी है और मुझको उस __ कक्षासे बाहर नहीं मानते है। सम्प्रदायोंमे और सम्प्रदायगत
धर्म-पंथोंमे उन्हे प्रतिगामिता दिखती है। उनके प्रति किसी सराहनाको वे समझ नहीं सकते। वे कृपा करते है और मित्रता मे मुझे सहते है । किन्तु मेरी सराहनाको सहना वे अपना कर्तव्य नहीं मानते और वे ठीक है।
आज विलक्षण युगमे हम रहते है। बडा जागरूक और चौकन्ना हमे रहना पड़ता है। मतवाद बहुत है और सब ही हमारी श्रद्धाके दावेदार वनकर सामने आते है। ऐसेमे श्रद्धा किस किसको दी जाय ? परिणाम यह कि सदा और चारों ओर हमे अपनी आलोचनाको जगाये रखना होता है। ऐसे ही हम अपनेको वचाते है। नहीं तो शायद लूट जायं और अपनेको खो बैठे।
जानता हूं जमाना ऐसा है। मैं खुद गुरुओंकी उतनी आवध्यकता नहीं देखता जितनी सेवको की। ज्ञान देनेवाला नहीं, म्नेह और सहानुभूति देनेवाला चाहिए । इसी तरह वादके प्रचार