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शिष्य सम्पदा
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मुनि कनक वहा आये और आचार्यश्रीको अभिवन्दन कर एकात मे उनने आचार्यश्री से पूछा- यदि कोई शंकासहित शासन मे रहे तो कैसे ? आचार्यश्रीने उत्तर देते हुए कहा - शंकासहित शासन मे नहीं रहना चाहिए । आचार्य भिक्षुकी यह मर्यादा की हुई है कि कोई भी साधु सन्दिग्ध भाव या संकोचपूर्वक शासनमे न रहे । आचार्यश्रीने कहा- तू यह क्यों पूछता है ? इसका प्रयोजन क्या है ? उत्तरमें मुनि कनकने प्रार्थना की कि मैं इसे जानना चाहता
कन्हैयालालजीकी प्रवृत्तियोंमे व्यग्रता बढती गई । वह बालमुनि उन्हें समझता रहा । आखिर पिताको यह निश्चय हो गया कि मेरे कहने से यह मेरे साथ जानेवाला नहीं है । उन्होने दूसरा प्रयोग प्रारम्भ किया । आचार्यश्रीसे वार वार मुनि कनक के बारेमे पुकार करने लगे- यह अविनीत है, मेरा कहा नहीं मानता । आचार्यश्रीने मुनि कनकको उलाहना दिया और आगे पिताके कहे अनुसार चलनेका निर्देशन किया । ऐसी घटनाएं भी कई बार घटीं । यह एक बड़ी समस्या थी ।
बालककी प्रवृत्तियोको देखते हुए यह अनुमान तक लगाना कठिन था कि यह अविनीत है । दूसरी ओर पिता पुत्र के अहित की बात सोचता है, यह जानना भी दुरूह था | आखिर 'अन्धेर नहीं कुछ देर है' वाली जनोक्ति चरितार्थ हुई । कन्हैयालालजीको यह ट निश्चय हो गया कि कनक मेरे प्रयत्नोंसे मेरे साथ जानेवाला नहीं। इसलिए उन्होंने ऐसी प्रवृत्ति करनेका सोचा कि