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जन-सम्पर्क
आपके लीवनका यह एक रहस्यपूर्ण अध्याय है। इसको लेकर विरोधो क्षेत्रोंमे कटु, कटुतम आलोचनाएं और टोकाटिप्पणियां हुई है। न आपने उनका विशेष समाधान किया और न उन आलोचकाने इसका तत्त्व छूनेका विशेष प्रयत्न किया । आपके सम्पर्कमे आनेवाले व्यक्ति शिक्षा, सत्ता, न्याय और विभिन्न पार्टियोंसे सम्बन्ध रखनेवाले है । सैकडो, हजारों व्यक्ति आये, दो चार पाच दिन सम्पर्कमे रहे, जो कुछ देखा, उसे उन्होंने लिसा अथवा कहा। कारण क्या है ? पता नहीं, कई व्यक्ति इससे झटा उठे। उन्होने आचार्यश्री पर. श्रावक वर्ग पर और आनेवाले व्यक्तियों पर वडे-बडे आरोप लगाये-जैसे आचायजी का वडापनकी भूख है. वे दूसरोंके पासस प्रमाण-पत्र लेना चाहते