SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विचारककी वीणाका झकार आपके विचारोंकी गहराईको तोलें। मैं सिर्फ इतना ही कहूंगा कि आचार्यश्री के हृदयको समझनेकी चेष्टा करें। आपने अध्यात्मवादकी उपयोगिताको बड़े मार्मिक शब्दों में समझाया है : "अपने लिए अपना नियन्त्रण, यही है थोड़ेमे अध्यात्मवाद । दूसरोंके लिए अपना नियन्त्रण करनेवाला-दूसरों पर नियन्त्रण करनेवाला भी दूसरोंको धोखा दे सकता है। किन्तु अपने लिए अपना नियन्त्रण करनेवाला वैसा नहीं कर सकता।" ____ अध्यात्मवादके बारेमे बड़े बड़े दिमागी लोग भ्रान्त रहते है। वे उसे दूसरी दुनियाकी वस्तु मानते है । वस्तुस्थिति वैसी नहीं है। अध्यात्मवाद आत्मवादीके लिए जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक एक संसारी प्राणीके लिए है। कारण कि उसके बिना मनुष्यका व्यवहार भी प्रामाणिकतासे चल नहीं सकता। ___ आपके विचारानुसार भौतिकवाद इसी युगकी देन नहीं है और न उसके बिना दुनियाका काम भी चल सकता। किन्तु उसीका प्राधान्य रहे, यह ठीक नहीं। __ भलाई और बुराई दोनों साथ-साथ चलती है। यह जगत् न तो कभी बिल्कुल भला बना और न कभी बिल्कुल बुरा। सिर्फ मात्राका तारतम्य होता है। हमारा प्रयत्न ऐसा हो कि भलाई की मात्रा बढ़े। हम यह सोच बैठ जायें कि बुराई आज तक नहीं मिटी तो अब कैसे मिटेगी, यह निराशा है। इसका परिणाम बुराई को सहयोग देना है। हमे पवित्र उद्देश्यके साथ बुराईके विरुद्ध संघर्प करते रहना चाहिए।
SR No.010846
Book TitleAcharya Shree Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages215
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy